एकाग्रतासे–शुक्लध्यानरूप अग्नि द्वारा–चार ✽घातिकर्मोंका नाश
होता है और अरिहन्त दशा तथा केवलज्ञानकी प्राप्ति होती है,
जिसमें तीन काल और तीन लोकके समस्त पदार्थ स्पष्ट ज्ञात होते
हैं और तब भव्य जीवोंको मोक्षमार्गका उपदेश देते हैं ।।११।।
सिद्धदशाका (सिद्धस्वरूप)का वर्णन
पुनि घाति शेष अघाति विधि, छिनमांहिं अष्टम भू वसैं ।
वसु कर्म विनसैं सुगुण वसु, सम्यक्त्व आदिक सब लसैं ।।
संसार खार अपार पारावार तरि तीरहिं गये ।
अविकार अकल अरूप शुचि, चिद्रूप अविनाशी भये ।।१२।।
✽घातिकर्म दो प्रकारके हैं–द्रव्य-घातिकर्म और भाव-घातिकर्म ।
उनमें शुक्लध्यान द्वारा शुद्ध दशा प्रगट होने पर भाव-घातिकर्मरूप
अशुद्ध पर्यायें उत्पन्न नहीं होतीं वह भावघातिकर्मका नाश है, तथा
उसीप्रकार द्रव्य-घातिकर्मका स्वयं अभाव होता है, वह द्रव्य-
घातिकर्मका नाश है ।
अन्वयार्थ : – (पुनि) केवलज्ञान प्राप्त करनेके पश्चात्
१७६ ][ छहढाला