Chha Dhala (Hindi).

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चक्रवर्तीको (वा अहमिन्द्रको) या अहमिन्द्रको (नहीं कह्यो) कहनेमें
नहीं आया–नहीं होता । (तब ही) वह स्वरूपाचरणचारित्र प्रगट
होनेके पश्चात् जब (शुक्ल ध्यानाग्नि करि) शुक्लध्यानरूपी अग्नि
द्वारा (चउघाति विधि कानन) चार घातिकर्मोंरूपी वन (दह्यो) जल
जाता है और (केवलज्ञानकरि) केवलज्ञानसे (सब) तीनकाल और
तीनलोकमें होनेवाले समस्त पदार्थोंके सर्वगुण तथा पर्यायोंको
(लख्यो) प्रत्यक्ष जान लेते हैं, तब (भविलोकको) भव्य जीवोंको
(शिवमग) मोक्षमार्ग (कह्यो) बतलाते हैं ।
भावार्थ :इस स्वरूपाचरणचारित्रके समय मुनिराज जब
उपर्युक्तानुसार चिंतवन-विचार करके आत्मामें लीन हो जाते हैं,
तब उन्हें जो आनन्द होता है, वैसा आनन्द इन्द्र, नागेन्द्र, नरेन्द्र
(चक्रवर्ती) या अहमिन्द्र (कल्पातीत देव)को भी नहीं होता । यह
स्वरूपाचरणचारित्र प्रगट होनेके पश्चात् स्वद्रव्यमें उग्र
छठवीं ढाल ][ १७५