मोक्षदशाका वर्णन
निजमांहिं लोक-अलोक गुण - परजाय प्रतिबिम्बित थये ।
रहि हैं अनन्तानन्त काल, यथा तथा शिव परिणये ।।
धनि धन्य हैं जे जीव, नरभव पाय यह कारज किया ।
तिनही अनादि भ्रमण पंचप्रकार तजि, वर सुख लिया ।।१३।।
अन्वयार्थ : – (निजमांहि) उन सिद्धभगवानके आत्मामें
(लोक-अलोक) लोक तथा अलोकके (गुण, परजाय) गुण और
पर्यायें (प्रतिबिम्बित थये) झलकने लगते हैं अर्थात् ज्ञात होने लगते
हैं; वे (यथा) जिसप्रकार (शिव) मोक्षरूपसे (परिणये) परिणमित
हुए हैं (तथा) उसीप्रकार (अनन्तानन्त काल) अनन्त-अनन्त काल
तक (रहिहैं) रहेंगे ।
(जे) जिन (जीव) जीवोंने (नरभव पाय) पुरुष पर्याय प्राप्त
करके (यह) यह मुनिपद आदिकी प्राप्तिरूप (कारज) कार्य
(किया) किया है, वे जीव (धनि धन्य हैं) महान धन्यवादके पात्र
हैं और (तिनही) उन्हीं जीवोंने (अनादि) अनादिकालसे चले आ
रहे (पंच प्रकार) पाँच प्रकारके परिवर्तनरूप (भ्रमण)
संसारपरिभ्रमणको (तजि) छोड़कर (वर) उत्तम (सुख) सुख
(लिया) प्राप्त किया है ।
१७८ ][ छहढाला