२. अघातिया, आवश्यक, उपयोग, कायगुप्ति, छियालीस दोष,
तप, धर्म, परिग्रह, प्रमाद, प्रमाण, मुनिक्रिया, महाव्रत,
रत्नत्रय, शील, शेष गुण, समिति, साधुगुण और सिद्धगुणके
भेद कहो ।
३. नय और निक्षेपमें, प्रमाण और नयमें, ज्ञान और आत्मामें, शुभ
उपयोग और शुद्ध उपयोगमें अन्तर बतलाओ ।
४. आठवीं पृथ्वी, ग्रन्थ, ग्रन्थकार, ग्रन्थ-छन्द, ग्रन्थ-प्रकरण,
सर्वोत्तम तप, सर्वोत्तम धर्म, संयमका उपकरण, शुचिका
उपकरण और ज्ञानका उपकरण–आदिके नाम बतलाओ ।
५. ध्यानस्थ मुनि, सम्यग्ज्ञान और सिद्धका सुख आदिके दृष्टान्त
बतालाओ ।
६. छह ढालोंके नाम, मुनिके पींछी आदिका अपरिग्रहपना,
रत्नत्रयके नाम, श्रावक को नग्नताका अभाव आदिके सिफ र्
कारण बतलाओ ।
७. अरिहन्त दशाका समय, अन्तिम उपदेश, आत्मस्थिरताके
समयका सुख, केशलोंचका समय, कर्मनाशसे उत्पन्न
होनेवाले गुणोंका विभाग, ग्रन्थ-रचनाका काल, जीवकी
नित्यता तथा अमूर्तिकपना, परिषह-जयका फल, रागरूपी
अग्निकी शान्तिका उपाय, शुद्ध आत्मा, शुद्ध उपयोगका
विचार और दशा, सकलचारित्र, सिद्धोंकी आयु, निवासस्थान
और समय तथा स्वरूपाचरणचारित्रादिका वर्णन करो ।
८. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, देशचारित्र,
सकलचारित्र, चार गति, स्वरूपाचरणचारित्र, बारह व्रत,
१९० ][ छहढाला