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श्रीसद्गुरुदेवाय नमः
अध्यात्मप्रेमी कविवर पण्डित दौलतरामजी कृत
छहढाला
(सुबोध टीका)
पहली ढाल
मंगलाचरण
(सोरठा)
तीन भुवनमें सार, वीतराग विज्ञानता ।
शिवस्वरूप शिवकार, नमहूँ त्रियोग सम्हारिकैं ।।१।।
अन्वयार्थ : – (वीतराग ) राग-द्वेष रहित, (विज्ञानता)
केवलज्ञान, (तीन भुवनमें) तीन लोकमें, (सार) उत्तम वस्तु
(शिवस्वरूप) आनन्दस्वरूप [और ] (शिवकार) मोक्ष प्राप्त
करानेवाला है; [उसे मैं ] (त्रियोग) तीन योगसे (सम्हारिकैं)
सावधानी पूर्वक (नमहूँ ) नमस्कार करता हूँ ।
नोट– इस ग्रन्थमें सर्वत्र ( ) यह चिह्न मूल ग्रन्थके पदका है और
[ ] इस चिह्न का प्रयोग संधि मिलानेके लिये किया गया है ।