Chha Dhala (Hindi).

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अन्वयार्थ :[निगोदमें यह जीव ] (एक श्वासमें) एक
साँसमें (अठदस बार) अठारह बार (जनम्यो) जनमा और (मरयो)
मरा [तथा ] (दुखभार) दुःखोंके समूह (भरयो) सहन किये [और
वहाँसे ] (निकसि) निकलकर (भूमि) पृथ्वीकायिक जीव, (जल)
जलकायिक जीव, (पावक) अग्निकायिक जीव (भयो) हुआ, तथा
(पवन) वायुकायिक जीव [और ] (प्रत्येक वनस्पति) प्रत्येक
वनस्पतिकायिक जीव (थयो) हुआ ।
भावार्थ :निगोद [साधारण वनस्पति ]में इस जीवने एक
श्वासमात्र (जितने) समयमें अठारह बार जन्म और मरण करके
भयंकर दुःख सहन किये हैं, और वहाँसे निकलकर पृथ्वीकायिक,
जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक तथा प्रत्येक वनस्पति-
कायिक जीव
के रूपमें उत्पन्न हुआ है ।।।।
१ नया शरीर धारण करना वर्तमान शरीरका त्याग
३ निगोदसे निकलकर ऐसी पर्यायें धारण करनेका कोई निश्चित क्रम
नहीं है; निगोदसे एकदम मनुष्य पर्याय भी प्राप्त हो सकती है जैसे
कि–भरत चक्रवर्ती के ३२ हजार पुत्रों ने निगोदसे सिधी मनुष्य पर्याय
प्राप्त की और मोक्ष गये
६ ][ छहढाला