Chha Dhala (Hindi). Gatha: 5: tiryanchgatime trasparyaykee durlabhatA aur usakA dukh (Dhal 1).

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तिर्यंचगतिमें त्रसपर्यायकी दुर्लभता और उसका दुःख
दुर्लभ लहि ज्यों चिन्तामणि, त्यों पर्याय लही त्रसतणी
लट पिपील अलि आदि शरीर, धर-धर मरयो सही बहु पीर ।।।।
अन्वयार्थ :(ज्यों) जिस प्रकार (चिन्तामणि)
चिन्तामणिरत्न (दुर्लभ) कठिनाईसे (लहि) प्राप्त होता है (त्यों)
उसीप्रकार (त्रसतणी) त्रसकी (पर्याय) पर्याय [भी बड़ी
कठिनाईसे ] (लही) प्राप्त हुई । [वहाँ भी ] (लट) इल्ली
(पिपील) चींटी (अलि) भँवरा (आदि) इत्यादिके (शरीर) शरीर
(धर धर ) बारम्बार धारण करके (मरयो) मरणको प्राप्त हुआ
[और ] (बहु पीर) अत्यन्त पीड़ा (सही) सहन की ।
भावार्थ :जिस प्रकार चिन्तामणिरत्न बड़ी कठिनाईसे
प्राप्त होता है; उसीप्रकार इस जीवने त्रसकी पर्याय बड़ी
कठिनतासे प्राप्त की । उस त्रस पर्यायमें भी लट (इल्ली) आदि
दो इन्द्रिय जीव, चींटी आदि तीन इन्द्रिय जीव और भँवरा
आदि चार इन्द्रिय जीवके शरीर धारण करके मरा और अनेक
दुःख सहन किये
।।।।
पहली ढाल ][ ७