शरीर बारम्बार ✽पारेकी भाँति बिखरकर फि र जुड़ जाते हैं ।
संक्लिष्ट परिणामवाले अम्बरीष आदि जातिके असुरकुमार देव
पहले, दूसरे तथा तीसरे नरक तक जाकर वहाँकी तीव्र यातनाओंमें
पड़े हुए नारकियोंको अपने अवधिज्ञानके द्वारा परस्पर बैर
बतलाकर अथवा क्रूरता और कुतूहलसे आपसमें लड़ाते हैं और
स्वयं आनन्दित होते हैं । उन नारकी जीवोंको इतनी महान प्यास
लगती है कि मिल जाये तो पूरे महासागरका जल भी पी जायें;
तथापि तृषा शांत न हो; किन्तु पीनेके लिये जलकी एक बूँद भी
नहीं मिलती ।।११।।
नरकोंकी भूख, आयु और मनुष्यगति प्राप्तिका वर्णन
तीनलोकको नाज जु खाय, मिटै न भूख कणा न लहाय ।
ये दुख बहु सागर लौं सहै, करम जोगतैं नरगति लहै ।।१२।।
अन्वयार्थ : – [उन नरकोंमें इतनी भूख लगती है कि ]
✽पारा एक धातुके रस समान होता है । धरती पर फें कनेसे वह
अमुक अंश में छार-छार होकर बिखर जाता है और पुनः एकत्रित
कर देनेसे एक पिण्डरूप बन जाता है ।
पहली ढाल ][ १५