Chha Dhala (Hindi). Gatha: 13: manushyagatime garbhanivAs tathA prasavkAlke dukha (Dhal 1).

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(तीन लोकको) तीनों लोकका (नाज) अनाज (जु खाय) खा
जाये; तथापि (भूख) क्षुधा (न मिटै) शांत न हो, [परन्तु खानेके
लिए ] (कणा) एक दाना भी (न लहाय) नहीं मिलता । (ये दुख)
ऐसे दुःख (बहु सागर लौं) अनेक सागरोपम काल तक (सहै)
सहन करता है, (करम जोगतैं) किसी विशेष शुभकर्मके योगसे
(नरगति) मनुष्यगति (लहै) प्राप्त करता है ।
भावार्थ :उन नरकोंमें इतनी तीव्र भूख लगती है कि
यदि मिल जाये तो तीनों लोकका अनाज एक साथ खा जायें;
तथापि क्षुधा शांत न हो; परन्तु वहाँ खानेके लिए एक दाना भी
नहीं मिलता । उन नरकोंमें यह जीव ऐसे अपार दुःख दीर्घकाल
(कमसे कम दस हजार वर्ष और अधिकसे अधिक तेतीस सागरोपम
काल तक) भोगता है । फि र किसी शुभकर्मके उदयसे यह जीव
मनुष्यगति प्राप्त करता है
।।१२।।
मनुष्यगतिमें गर्भनिवास तथा प्रसवकालके दुःख
जननी उदर वस्यो नव मास, अंग सकुचतैं पायो त्रास
निकसत जे दुख पाये घोर, तिनको कहत न आवे ओर ।।१३।।
अन्वयार्थ :[मनुष्यगतिमें भी यह जीव ] (नव मास)
नौ महीने तक (जननी) माताके (उदर) पेटमें (वस्यो) रहा; [तब
१६ ][ छहढाला