जाये; तथापि (भूख) क्षुधा (न मिटै) शांत न हो, [परन्तु खानेके
लिए ] (कणा) एक दाना भी (न लहाय) नहीं मिलता । (ये दुख)
ऐसे दुःख (बहु सागर लौं) अनेक सागरोपम काल तक (सहै)
सहन करता है, (करम जोगतैं) किसी विशेष शुभकर्मके योगसे
(नरगति) मनुष्यगति (लहै) प्राप्त करता है ।
तथापि क्षुधा शांत न हो; परन्तु वहाँ खानेके लिए एक दाना भी
नहीं मिलता । उन नरकोंमें यह जीव ऐसे अपार दुःख दीर्घकाल
(कमसे कम दस हजार वर्ष और अधिकसे अधिक तेतीस सागरोपम
काल तक) भोगता है । फि र किसी शुभकर्मके उदयसे यह जीव
मनुष्यगति प्राप्त करता है