Chha Dhala (Hindi). Gatha: 14: manushyagatime bAl yuvA aur vruddhAvasthAkA dukh (Dhal 1).

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वहाँ ] (अंग) शरीर (सकुचतैं) सिकोड़कर रहनेसे (त्रास) दुःख
(पायो) पाया, [और ] (निकसत) निकलते समय (जे) जो (घोर)
भयंकर (दुख पाये) दुःख पाये (तिनको) उन दुःखोंको (कहत)
कहनेसे (ओर) अन्त (न आवे) नहीं आ सकता ।
भावार्थ :मनुष्यगतिमें भी यह जीव नौ महीने तक
माताके पेटमें रहा; वहाँ शरीरको सिकोड़कर रहनेसे तीव्र वेदना
सहन की, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता । कभी-कभी तो
माताके पेटसे निकलते समय माताका अथवा पुत्रका अथवा
दोनोंका मरण भी हो जाता है
।।१४।।
मनुष्यगतिमें बाल, युवा और वृद्धावस्थाके दुःख
बालपनेमें ज्ञान न लह्यो, तरुण समय तरुणी-रत रह्यो
अर्धमृतकसम बूढापनो, कैसे रूप लखै आपनो ।।१४।।
अन्वयार्थ :[मनुष्यगतिमें जीव ] (बालपनेमें)
बचपनमें (ज्ञान) ज्ञान (न लह्यो) प्राप्त नहीं कर सका [और ]
(तरुण समय) युवावस्थामें (तरुणी-रत) युवती स्त्रीमें लीन (रह्यो)
रहा, [और ] (बूढ़ापनो) वृद्धावस्था (अर्धमृतकसम) अधमरा जैसा
[रहा, ऐसी दशामें ] (कैसे) किस प्रकार [जीव ] (आपनो) अपना
(रूप) स्वरूप (लखै) देखे-विचारे ।
पहली ढाल ][ १७