Chha Dhala (Hindi). Gatha: 15: devagatime bhavantrikakA dukh (Dhal 1).

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भावार्थ :मनुष्यगतिमें भी यह जीव बाल्यावस्थामें
विशेष ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाया, यौवनावस्थामें ज्ञान तो प्राप्त
किया किन्तु स्त्रीके मोह (विषय-भोग)में भूला रहा और
वृद्धावस्थामें इन्द्रियोंकी शक्ति कम हो गई अथवा मरणपर्यंत
पहुँचे, ऐसा कोई रोग लग गया कि, जिससे अधमरा जैसा
पड़ा रहा । इस प्रकार यह जीव तीनों अवस्थाओंमें
आत्मस्वरूपका दर्शन (पहिचान) न कर सका
।।१४।।
देवगतिमें भवनत्रिकका दुःख
कभी अकामनिर्जरा करै, भवनत्रिकमें सुर तन धरै
विषय-चाह-दावानल दह्यो, मरत विलाप करत दुख सह्यो ।।१५।।
अन्वयार्थ :[इस जीवने ] (कभी) कभी
(अकामनिर्जरा) अकामनिर्जरा (करै) की [तो मरनेके पश्चात् ]
(भवनत्रिक) भवनवासी, व्यंतर और ज्योतिषीमें (सुरतन) देवपर्याय
(धरै) धारण की, [परन्तु वहाँ भी ] (विषय-चाह) पाँच इन्द्रियोंके
विषयोंकी इच्छारूपी (दावानल) भयंकर अग्निमें (दह्यो) जलता
१८ ][ छहढाला