Chha Dhala (Hindi). GathA: 16: devagatime vaimanikdevokA dukh (Dhal 1).

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रहा [और ] (मरत) मरते समय (विलाप करत) रो-रो कर (दुख)
दुःख (सह्यो) सहन किया ।
भावार्थ :जब कभी इस जीवने अकाम निर्जरा की, तब
मरकर उस निर्जराके प्रभावसे (भवनत्रिक) भवनवासी, व्यंतर और
ज्योतिषी देवोंमेंसे किसी एकका शरीर धारण किया । वहाँ भी अन्य
देवोंका वैभव देखकर पंचेन्द्रियोंके विषयोंकी इच्छारूपी अग्निमें
जलता रहा । फि र मंदारमालाको मुरझाते देखकर तथा शरीर और
आभूषणोंकी कान्ति क्षीण होते देखकर अपना मृत्युकाल निकट है–
ऐसा अवधिज्ञान द्वारा जानकर ‘‘हाय ! अब यह भोग मुझे भोगनेको
नहीं मिलेंगे !’’ ऐसे विचारसे रो-रोकर अनेक दुःख सहन
किये
।।१५।।
अकाम निर्जरा यह सिद्ध करती है कि कर्मके उदयानुसार
ही जीव विकार नहीं करता, किन्तु चाहे जैसे कर्मोदय होने पर
भी जीव स्वयं पुरुषार्थ कर सकता है ।
देवगतिमें वैमानिक देवोंका दुःख
जो विमानवासी हू थाय, सम्यग्दर्शन बिन दुख पाय
तहँतें चय थावर तन धरै, यों परिवर्तन पूरे करै ।।१६।।
पहली ढाल ][ १९