Chha Dhala (Hindi). Pahalee dhalka bhed-sangrah.

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अंत समयमें मंदारमाला मुरझा जानेसे, आभूषण और शरीरकी
कान्ति क्षीण होनेसे मृत्युको निकट आया जानकर महान दुःखी
होता है, और आर्तध्यान करके, हाय-हाय करके मरता है । फि र
एकेन्द्रिय जीव तक होता है अर्थात् पुनः तिर्यंचगतिमें जा पहुँचता
है । इस प्रकार चारों गतियोंमें जीवको कहीं भी सुख-शांति नहीं
मिलती । इस कारण अपने मिथ्यात्वभावोंके कारण ही निरन्तर
संसारचक्रमें परिभ्रमण करता रहता है ।
पहली ढालका भेद-संग्रह
एकेन्द्रिय :–पृथ्वीकायिक जीव, अपकायिक जीव, अग्निकायिक
जीव, वायुकायिक जीव और वनस्पतिकायिक जीव ।
गति :–मनुष्यगति, तिर्यंचगति, देवगति और नरकगति ।
जीव :–संसारी और मुक्त ।
त्रस :–द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ।
देव :–भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक ।
पंचेन्द्रिय :–संज्ञी और असंज्ञी ।
योग :–मन, वचन और काय अथवा द्रव्य और भाव ।
लोक :–ऊर्ध्व, मध्य, अधो ।
वनस्पति :–साधारण और प्रत्येक ।
वैमानिक :–कल्पोत्पन्न, कल्पातीत ।
संसारी :–त्रस और स्थावर अथवा एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय,
चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ।
पहली ढाल ][ २३