पहली ढालका लक्षण-संग्रह
अकामनिर्जरा :–सहन करनेकी अनिच्छा होने पर भी जीव रोग,
क्षुधादि सहन करता है । तीव्र कर्मोदयमें युक्त न होकर
जीव पुरुषार्थ द्वारा मंदकषायरूप परिणमित हो वह ।
अग्निकायिक :–अग्नि ही जिसका शरीर होता है ऐसा जीव ।
असंज्ञी :–शिक्षा और उपदेश ग्रहण करनेकी शक्ति रहित जीवको
असंज्ञी कहते हैं ।
इन्द्रिय :–आत्माके चिह्नको इन्द्रिय कहते हैं ।
एकेन्द्रिय :–जिसे एक स्पर्शनेन्द्रिय ही होती है ऐसा जीव ।
गति नामकर्म :–जो कर्म जीवके आकार नारकी, तिर्यंच, मनुष्य
तथा देव जैसे बनाता है ।
गति :–जिसके उदयसे जीव दूसरी पर्याय (भव) प्राप्त करता है ।
चिन्तामणि :–जो इच्छा करने मात्रसे इच्छित वस्तु प्रदान करता
है, ऐसा रत्न ।
तिर्यंचगति :–तिर्यंचगति नामकर्मके उदयसे तिर्यंचोंमें जन्म धारण
करना ।
देवगति :–देवगति नामकर्मके उदयसे देवोंमें जन्म धारण करना ।
नरक :–पापकर्मके उदयमें युक्त होनेके कारण जिस स्थानमें जन्म
लेते ही जीव असह्य एवं अपरिमित वेदनाका अनुभव
करने लगता है तथा दूसरे नारकियों द्वारा सताये जानेके
कारण दुःखका अनुभव करता है, तथा जहाँ तीव्र द्वेष-
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