Chha Dhala (Hindi).

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पूर्ण जीवन व्यतीत होता है–वह स्थान । जहाँ पर क्षणभर
भी ठहरना नहीं चाहता ।
नरकगति :–नरकगति नामकर्मके उदयसे नरकमें जन्म लेना ।
निगोद :–साधारण नामकर्मके उदयसे एक शरीरके आश्रयसे
अनंतानंत जीव समान रूपसे जिसमें रहते हैं, मरते हैं
और पैदा होते हैं, उस अवस्थावाले जीवोंको निगोद
कहते हैं ।
नित्यनिगोद :–जहाँके जीवोंने अनादिकालसे आजतक त्रसपर्याय
प्राप्त नहीं की ऐसी जीवराशि; किन्तु भविष्यमें वे जीव
त्रसपर्याय प्राप्त कर सकते हैं ।
परिवर्तन :–द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावरूप संसारचक्रमें
परिभ्रमण ।
पंचेन्द्रिय :–जिनके पाँच इन्द्रियाँ होती हैं ऐसे जीव ।
पृथ्वीकायिक :–पृथ्वी ही जिन जीवोंका शरीर है वे ।
प्रत्येकवनस्पति :–जिसमें एक शरीरका स्वामी एक जीव होता है
ऐसे वृक्ष, फल आदि ।
भव्य :–तीनकालमें किसी भी समय रत्नत्रय-प्राप्तिकी योग्यता
रखनेवाले जीवको भव्य कहा जाता है ।
मन :–हित-अहितका विचार तथा शिक्षा और उपदेश ग्रहण
करनेकी शक्ति सहित ज्ञान-विशेषको भावमन कहते हैं ।
हृदयस्थानमें आठ पंखुड़ियोंवाले कमलकी आकृति
समान जो पुद्गलपिण्ड
उसे जड़-मन अर्थात् द्रव्य-
मन कहते हैं ।
पहली ढाल ][ २५