मनुष्यगति :–मनुष्यगति नामकर्मके उदयसे मनुष्योंमें जन्म लेना
अथवा उत्पन्न होना ।
मेरु :–जम्बूद्वीपके विदेहक्षेत्रमें स्थित एक लाख योजन ऊँचा एक
पर्वत विशेष ।
मोह :–परके साथ एकत्वबुद्धि सो मिथ्यात्व मोह है; यह मोह
अपरिमित है तथा अस्थिरतारूप रागादि सो चारित्रमोह
है; यह मोह परिमित है ।
लोक :–जिसमें जीवादि छह द्रव्य स्थित हैं, उसे लोक अथवा
लोकाकाश कहते हैं ।
विमानवासी :–स्वर्ग और ग्रैवेयक आदिके देव ।
वीतरागका लक्षण
जन्म१, जरा२, तृषा३, क्षुधा४, विस्मय५, आरत६, खेद७।
रोग८, शोक९, मद१०, मोह११, भय१२, निद्रा१३, चिन्ता१४, स्वेद१५।।
राग१६, द्वेष१७, अरु मरण१८ जुत, ये अष्टादश दोष ।
नाहिं होत जिस जीवके, वीतराग सो होय ।।
श्वास :–रक्तकी गति प्रमाण समय, कि जो एक मिनटमें ८०
बारसे कुछ अंश कम चलती है ।
सागर :–दो हजार कोस गहरे तथा इतने ही चौड़े गोलाकार
गड्ढेको, कैंचीसे जिसके दो टुकड़े न हो सकें ऐसे तथा
एकसे सात दिनकी उम्रके उत्तम भोगभूमिके मेंढेके
बालोंसे भर दिया जाये । फि र उसमेंसे सौ-सौ वर्षके
अंतरसे एक बाल निकाला जाये । जितने कालमें उन
२६ ][ छहढाला