Chha Dhala (Hindi). Gatha: 11: samyaktvake pachchis dosh tathA ATh gun (Dhal 3).

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इस प्रकार (जो) जो (तत्त्वनकी) सात तत्त्वोंके भेद सहित (सरधा)
श्रद्धा करना सो (व्यवहारी) व्यवहार (समकित) सम्यग्दर्शन है ।
(जिनेन्द्र) वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी (देव) सच्चे देव
(परिग्रह बिन) चौबीस परिग्रहसे रहित (गुरु) वीतराग गुरु [तथा ]
(सारो) सारभूत (दयाजुत) अहिंसामय (धर्म) जैनधर्म (येहु) इन
सबको (समकितको) सम्यग्दर्शनका (कारण) निमित्तकारण (मान)
जानना चाहिये । सम्यग्दर्शनको उसके (अष्ट) आठ (अंगजुत) अंगों
सहित (धारो) धारण करना चाहिये ।
भावार्थ :मोक्षका स्वरूप जानकर उसे अपना परमहित
मानना चाहिये । आठ कर्मोंके सर्वथा नाश पूर्वक आत्माकी जो
सम्पूर्ण शुद्धदशा (पर्याय) प्रगट होती है, उसे मोक्ष कहते हैं । वह
दशा अविनाशी तथा अनन्त सुखमय है– इसप्रकार सामान्य और
विशेषरूपसे सात तत्त्वोंकी अचल श्रद्धा करना उसे
व्यवहारसम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) कहते हैं । जिनेन्द्रदेव, वीतरागी
(दिगम्बर जैन) निर्ग्रन्थ गुरु, तथा जिनेन्द्रप्रणीत अहिंसामय धर्म भी
उस व्यवहार सम्यग्दर्शनके कारण हैं अर्थात् इन तीनोंका यथार्थ
श्रद्धान भी व्यवहार सम्यग्दर्शन कहलाता है । उसे निम्नोक्त आठ
अंगों सहित धारण करना चाहिये । व्यवहार सम्यक्त्वीका स्वरूप
पहले, दूसरे तथा तीसरे छंदके भावार्थमें समझाया है ।
निश्चयसम्यक्त्वके बिना मात्र व्यवहारको व्यवहारसम्यक्त्व नहीं कहा
जाता
।।१०।।
सम्यक्त्वके पच्चीस दोष तथा आठ गुण
वसु मद टारि निवारि त्रिशठता, षट् अनायतन त्यागो
शंकादिक वसु दोष विना, संवेगादिक चित्त पागो ।।
तीसरी ढाल ][ ७१