Chha Dhala (Hindi). Gatha: 10: mokshakA lakShan, vyavahArsamyaktvakA lakShan tathA kAran (Dhal 3).

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मोक्षका लक्षण, व्यवहारसम्यक्त्वका लक्षण तथा कारण
सकल कर्मतैं रहित अवस्था, सो शिव, थिर सुखकारी
इहिविध जो सरधा तत्त्वनकी, सो समकित व्यवहारी ।।
देव जिनेन्द्र, गुरु परिग्रह बिन, धर्म दयाजुत सारो
येहु मान समकितको कारण, अष्ट-अंग-जुत धारो ।।१०।।
अन्वयार्थ :(सकल कर्मतैं) समस्त कर्मोंसे (रहित)
रहित (थिर) स्थिर-अटल (सुखकारी) अनन्त सुखदायक
(अवस्था) दशा-पर्याय सो (शिव) मोक्ष कहलाता है । (इहि विध)
(३) संवर–जिस प्रकार छिद्र बंद करनेसे नौकामें पानीका आना रुक
जाता है; उसी प्रकार शुद्धभावरूप गुप्ति आदिके द्वारा आत्मा में
कर्मोंका आना रुक जाता है
(४) निर्जरा–जिस प्रकार नौकामें आये हुए पानीमेंसे थोड़ा (किसी
बरतनमें भरकर) बाहर फें क दिया जाता है; उसी प्रकार निर्जरा द्वारा
थोड़े-से कर्म आत्मासे अलग हो जाते हैं
(५) मोक्ष– जिस प्रकार नौकामें आया हुआ सारा पानी निकाल देनेसे
नौका एकदम पानी रहित हो जाती है; उसी प्रकार आत्मामेंसे समस्त
कर्म पृथक् हो जानेसे आत्माकी परिपूर्ण शुद्धदशा (मोक्षदशा) प्रगट
हो जाती है अर्थात् आत्मा मुक्त हो जाता है
।।।।
७० ][ छहढाला