मोक्षका लक्षण, व्यवहारसम्यक्त्वका लक्षण तथा कारण
सकल कर्मतैं रहित अवस्था, सो शिव, थिर सुखकारी ।
इहिविध जो सरधा तत्त्वनकी, सो समकित व्यवहारी ।।
देव जिनेन्द्र, गुरु परिग्रह बिन, धर्म दयाजुत सारो ।
येहु मान समकितको कारण, अष्ट-अंग-जुत धारो ।।१०।।
अन्वयार्थ : – (सकल कर्मतैं) समस्त कर्मोंसे (रहित)
रहित (थिर) स्थिर-अटल (सुखकारी) अनन्त सुखदायक
(अवस्था) दशा-पर्याय सो (शिव) मोक्ष कहलाता है । (इहि विध)
(३) संवर–जिस प्रकार छिद्र बंद करनेसे नौकामें पानीका आना रुक
जाता है; उसी प्रकार शुद्धभावरूप गुप्ति आदिके द्वारा आत्मा में
कर्मोंका आना रुक जाता है ।
(४) निर्जरा–जिस प्रकार नौकामें आये हुए पानीमेंसे थोड़ा (किसी
बरतनमें भरकर) बाहर फें क दिया जाता है; उसी प्रकार निर्जरा द्वारा
थोड़े-से कर्म आत्मासे अलग हो जाते हैं ।
(५) मोक्ष– जिस प्रकार नौकामें आया हुआ सारा पानी निकाल देनेसे
नौका एकदम पानी रहित हो जाती है; उसी प्रकार आत्मामेंसे समस्त
कर्म पृथक् हो जानेसे आत्माकी परिपूर्ण शुद्धदशा (मोक्षदशा) प्रगट
हो जाती है अर्थात् आत्मा मुक्त हो जाता है ।।९।।
७० ][ छहढाला