सम्यक्त्वके आठ अंग (गुण) और शंकादि आठ दोषोंका
लक्षण
जिनवचमें शंका न धार वृष, भव-सुख-वाँछा भानै ।
मुनि-तन मलिन न देख घिनावै, तत्त्व-कुतत्त्व पिछानै ।।
निज गुण अरु पर औगुण ढांके, वा निजधर्म बढ़ावै ।
कामादिक कर वृषतैं चिगते, निज-परको सुिद्रढ़ावै ।।१२।।
तीसरी ढाल ][ ७३