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चिद्दविलास
६. (संलाप) – गुण – दोष (संबंधी) पूछवुं के वारंवार भक्ति –
संलाप न करे.
(५६ – ६१) हवे सम्यक्त्वनां [छ] अभंग कारणो लखीए छीए
ः – जे [सम्यक्त्वना] भंगनां कारणो पामीने न डगे तेने अभंग कारण
कहीए; तेना छ भेदः – १ राजा, २. जनसमुदाय, ३. बळवान, ४.
देव, ५. पितादिक वडीलजनो (अने) ६. माताः — ए (सम्यक्त्वना)
अभंगपणामां छे भय (छे तेने) जाणतो रहे (अने) तेमना भयथी
निजधर्म – जिनधर्मने न तजे.
(६२ – ६७) हवे सम्यक्त्वनां छ स्थानो लखीए छीए – ✽
१. जीव छे, २. नित्य, ३. कर्ता, ४. भोक्ता, ५. अस्तिध्रुव
(मोक्ष) अने ५. (मोक्षनो) उपाय.
१. आत्मा अनुभवसिद्ध छे चेतनामां चित्त लीन करे; जीव अस्ति
(रूप) छे ते केवळज्ञानवडे प्रत्यक्ष छे.
२. द्रव्यार्थिक(नय)थी नित्य छे.
३. (आत्मा) पुण्य – पापनो कर्ता छे.
४. (आत्मा) भोक्ता पण छे. (आ पुण्य – पापनुं कर्ताभोक्तापणुं)
मिथ्याद्रष्टिमां छे. निश्चयनयथी (आत्मा तेनो) कर्ता के भोक्ता
नथी.
५. निर्वाण स्वरूप अस्ति ध्रुव छे. व्यक्त निर्वाण ते अक्षय मुक्ति
छे. अने
६. (सम्यग्) दर्शन-ज्ञान-चारित्र ते मोक्षनो उपाय छे. १ –
सम्यक्त्वना ए ६७ भेदो परमात्मानी प्राप्तिनो उपाय छे.
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जुओ, श्रीमद् राजचंद्रजीनो छ पदनो पत्र. १ तत्त्वार्थसूत्र १ – १