९२ ]
चिद्दविलास
प्रकाशने धरे छे. रात्रिनी जेम अंधारुं नथी; तेम आत्मा कर्मघटामां
छुपायो छे, तोपण (तेनां) दर्शन – ज्ञान प्रकाश करे छे, नेत्रद्वारा दर्शन
प्रकाश करे छे, तथा इन्द्रियद्वारा (अने) मन द्वारा (ज्ञान) करे छे –
जाणे छे; अचेतननी जेम जड नथी. आवुं स्वरूप परम गुप्त छे तो
पण ज्ञाता तेने प्रगट देखे छे.
जे बंधरूपथी मुक्त थवा चाहे, ते केवी रीते शुद्ध थाय? (ते
कहीए छीए)ः – जे पोतानी चेतना प्रकाश शक्ति उपयोगवडे प्रगट
छे तेने प्रतीतिमां लावे. पाणीनां तरंगनी जेम बडबडियां ( – विकल्प)
थाय छे तो थाओ, पण परिणाम दर्शन – ज्ञानमां डूबतां निज समुद्रमां
मळे (अने स्वभावनो) महिमा प्रगट करे. परमां परिणामने लीन करे
छे परंतु (पर) वस्तु तो जुदी छे, ते छूटी जाय छे, खेद थाय, मेला
थाय त्यां परिणाम न गोपववा, स्वरूपमां लगाडवा. अशुद्ध ज्ञानमां
पण जाणपणुं तो न गयुं. ते जाणपणा तरफ जोतां, निज ज्ञान जाति
छे, एवी भावनामां निज रसास्वाद आवे छे. आ वात कंई कहेवा
मात्र नथी, चाखवामां ( – अनुभवमां) स्वाद छे; (ए स्वाद) जेणे
चाख्यो ते जाणे छे, लखाणमां (ते) आवतो नथी. आ तरफ बाह्यमां
देखी देखीने अंतरने विसर्यो छे तेथी ज चोराशीमां लोटे ( – भटके)
छे. जेम १लोटनजडीने देखी देखीने बिलाडी लोटे छे, तेम बाह्यमां
देखी देखीने जीव भटके छे. जो बाह्यमां देखवानुं छोडे तो लोटवानुं
छूटे; माटे पर दर्शन मटाडी निज अवलोकनवडे आ मुक्तपद छे,
अनुभव छे, अनंत सुख (रूप) चिद्विलासनो प्रकाश छे.
१. आत्मावलोकन पृ. ५०, ५८, अनुभवप्रकाश गुज० बीजी आवृत्ति. पृ. २२.