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चिद्दविलास
स्वरूपनी स्थिरता – विश्राम – आचरण करवां. अनंत गुणमां उपयोग
लगाडवो. मनद्वारा उपयोग चंचळ (थाय) छे ते चंचळताने रोकवाथी
चिदानंद उघडे छे – ज्ञाननयन खूले छे. अनंतगुणमां मन लागे त्यारे
उपयोग अनंतगुणमां अटके छे, अने त्यारे विशृद्ध थाय छे; प्रतीतिवडे
रसास्वाद ऊपजे छे, तेमां मग्न थईने रहेवुं. परिणामने वस्तुनी
अनंतशक्तिमां स्थिर करवा.१ आ जीवना परिणाम परभावोनुं ज
अवलंबन करीने (तेने) सेव्या करे छे; त्यां, ते भावोने ज सेवतां,
(परभावरूप) परिणामभावने ज निज परिणाम स्वभावपणे देखे छे,
जाणे छे, सेवे छे; परने निजस्वरूप ठीक करीने (मानीने) राखे छे.
एने ए ज प्रमाणे अनादिथी करतां आ जीवना परिणामनी अवस्था
घणा काळ सुधी वीती; पण (स्व) काळ पामीने भव्यता परिपक्व थई
त्यारे श्रीगुरुना उपदेशरूप कारण पाम्यो. ते गुरुए एम उपदेश कर्यो
के – (हे भव्य! तुं) परिणामवडे परनी सेवा करी करीने नीच एवा
परने उच्च एवा स्वपणे देखे छे. ए पर (अने) नीच छे (तेनामां)
स्व (पणुं) के २उच्चपणुं नथी (ते पर वस्तुओ) तने रंचमात्र पण
कांई दई शकती नथी. ते मने दे छे एम तुं जूठुं ज मानी रह्यो छे.
ए तो नीच (अने) पर छे, तुं ते नीचने स्व-पणे अने उच्चपणे
मानीने बहु ज नीच थयो छे.
हे भव्य! परिणाममां जे कांई निज उच्चपणुं छे तेने तें (कदी)
देख्युं नथी, जाण्युं नथी ने सेव्युं नथी, तेथी तेने तुं क्यांथी याद
राखे? वळी, जो हवे ते स्वभावने (तुं) देख, जाण अने तेनी सेवा
कर, त्यारे पोताथी ज तने याद पण रहेशे, तुं सुखी थशे, अयाची
(अयाचक, स्वाधीन) महिमा लहीश अने तुं प्रभु थई जईश. आ जे
१. आत्मावलोकनमां राजानुं द्रष्टांत आपीने आ प्रकरण विस्तारथी समजाव्युं छे.
जुओ, पृ. १६७ थी १८१.
२. अहीं स्वद्रव्यनुं उपादेयपणुं बताववा तेने उच्च कह्युं छे ने परद्रव्यनुं हेयपणुं
बताववा तेने नीच कह्युं छे.