अनंत संसार केम मटे?[ ९५
छे द्रव्यो छे तेमां चेतन राजा छे. (चेतन सिवायना अन्य) ते पांच
द्रव्योमां तो तुं न अटक. तारो महिमा बहु ज ऊंचो छे. जे
नोकर्म(रूप) वसती वसे छे ते ताराथी ज ( – चेतन राजाथी ज) वसती
जेवी लागे छे. अने आठ कर्मने देख, ते पण पुद्गल द्रव्यनी जाति
छे, पोतानुं अंग नथी. (कर्म वगेरे) पौद्गलिक जातिनी जे जे संज्ञा
छे, ते ज ते ज जातिनी संज्ञा चेतनपरिणाममां धरी छे; ते स्वभाव
नथी, ते पर कलित [ – पर साथे युक्त] भाव छे. माटे निज चेतनाए
[परभावनो जे] जूठो स्वांग धर्यो छे ते परभाव (रूपी) स्वांगने दूर
कर. तेने दूर करतां ज (तुं) प्रत्यक्ष साक्षात् स्वभाव-सन्मुख स्थिर
थईश – विश्राम पामीश अने वचनातीत महिमाने पामीश. [ए प्रमाणे
पोताना स्वभावने प्राप्त कर्या पछी], पर – नीच परिणामने धारण
करवा छतां पण चैतन्यराजाने ठीक कर्यो छे [ – ओळखी लीधो छे]
तेथी ते नीच संबंधमां तुं ठगाशे नहि. [ए रीते] वधतां वधतां
परमपदने पामीश, अने त्रणे लोकमां तारी दुहाई वर्तावीश
[ – फेलाशे.]
– ए प्रमाणे गुरुवचन सांभळीने ज्ञाता पोतानी चेतनाशक्तिने
ग्रहे छे. [अने परमां] ज्यां ज्यां देखे छे त्यां त्यां जडनो नमूनो छे,
अनुपम ज्ञानज्योति ते पोतानुं पद छे. स्वरूप प्रकाशवडे अनादि
विभावनो विनाश थाय छे. पोताना स्वरूपमांथी दर्शन – ज्ञाननो प्रकाश
ऊठे छे, ते (दर्शन – ज्ञान) पर पदने देखीजाणीने अशुद्ध थाय छे.
अहीं एटलुं विशेष छे के ज्यां रागादि परिणामरूपे देखवुं – जाणवुं छे
त्यां विशेष अशुद्धता छे (अने) सामान्य पदनी दशाथी देखे – जाणे छे
त्यां सामान्य अशुद्धता छे.
चोथा गुणस्थानवाळाने एकदेश उपयोगनी संभाळ थई छे,
त्यां, (तेने) एकदेश शुद्धता जाणवी.
हवे पांचमा गुणस्थानमां अप्रत्याख्यान संबंधी रागादिक गया