सम्यक्त्वगुणनी प्रधाानता
[१४] सम्यक्त्व गुणनी प्रधानतानुं कारण (पृ. १२मां) नीचे मुजब
आप्युं छे –
‘‘सम्यक्त्व गुण छे ते प्रधान गुण छे, केमके सर्वे गुणो सम्यक्
आनाथी छे; सर्वे गुणोनुं अस्तित्वपणुं अनाथी छे; सर्वे गुणोनो निश्चय,
यथा अवस्थितभाव (आनाथी) छे. निश्चयनुं नाम सम्यक्त्व छे के ज्यां
व्यवहार, भेद, विकल्प नथी, अशुद्धता नथी, निज अनुभवस्वरूप सम्यक्
छे.
सम्यक्त्वनी छ भावना
सम्यग्दर्शननुं निश्चय स्वरूप तो एक ज प्रकारे छे, तो पण तेना
स्वरूपनुं निर्मळ ज्ञान थवा माटे व्यवहारे आ ग्रंथमां सम्यक्त्वना ६७
भेदो कह्या छे; तेमां सम्यक्त्वनी छ भावनानुं स्वरूप खास लक्षमां राखवा
योग्य होवाथी नीचे आप्युं छे –
‘‘१. (मूळ भावना) – सम्यक्त्व स्वरूपअनुभव ते सकळ निजधर्ममूळ-
शिवमूळ छे, जिनधर्मरूपी कल्पतरुनुं मूळ सम्यक्त्व छे, एम भावे.
२. (द्वार भावना) – धर्मनगरमां प्रवेशवा माटे सम्यक्त्व द्वार छे.
३. (प्रतिÌा भावना) – व्रत – तपनी, स्वरूपनी प्रतिष्ठा सम्यक्त्वथी
छे.
४. (निधाानभावना) – अनंत सुख देवाने निधान सम्यक्त्व छे.
५. (आधाारभावना) – निज गुणनो आधार सम्यक्त्व छे.
६. (भाजनभावना) – सर्व गुणोनुं भाजन (सम्यक्त्व) छे.
(आ) छ भावनाओ स्वरूपरस प्रगट करे छे.
संसारनुं मूळ मिथ्यात्व छे, तेम धर्मनुं मूळ सम्यक्त्व छे. धर्मनो
अर्थ वीतरागी चारित्र छे. सम्यग्दर्शनरूप मूळ वगरना व्रत अने तप ते
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