होवाथी तेने आ ग्रंथमां कारण तरीके लेवामां आव्युं नथी.
व्यवहार तथा निश्चय
[१०] आ विषयोनुं घणुं सुंदर स्वरूप आ ग्रंथमां आपवामां आव्युं
छे (जुओ पृ. ४६ थी ५९). मुमुक्षुओए ए बंने नयोनुं स्वरूप जाणवुं
ज जोईए; केम के बे नयोना विषयनुं ज्ञान थया सिवाय, बंने नयो उपादेय
छे के तेमांथी एक उपादेय छे? – ते जाणी शकाय नहि. नयप्रमाणद्वारा
युक्तिथी शिव-साधन थाय छे.
[११] आ संबंधे पण जनतामां, त्यागी तेमज विद्वानोमां मोटा
भागे एवी मान्यता छे के बंने नयोना विषयो उपादेय छे, अने व्यवहार
करतां करतां निश्चय प्रगटे; माटे देवदर्शन, पूजा, पडिमा, व्रत, महाव्रतरूप
व्यवहार प्रथम अंगीकार करवो अने तेम करतां करतां निश्चय (शुद्ध पर्याय)
प्रगटशे. – तेओनी आ मान्यता मिथ्या छे एम आ ग्रंथना ४६मा पाने
नीचेना शब्दोमां कह्युं छे —
‘‘व्यवहारथी परपरिणतिरूप राग – द्वेष
–
मोह – क्रोध
–
मान – माया
–
लोभादिक (छे, ते) अवलंबन हेय करवुं; संसारी जीवोए एक चैतन्य
आत्मस्वरूपविषे अवलंबन करवुं – सर्वथा स्वरूप उपादेय करवुं.’’
[१२] – ए प्रमाणे बंने नयोनुं यथार्थ ज्ञान
–
व्यवहारने हेय अने
निश्चयने उपादेय – ग्रहण करवुं ते बंने नयोनुं ग्रहण छे, पण व्यवहारनयना
आश्रये निश्चय प्रगटे एम मानवाथी तो बंने नयोनो नाश थाय छे.
सम्यग्दर्शन एटले नियत
[१३] उपर प्रमाणे पोताना एक चैतन्य आत्मस्वरूप विषे अवलंबन
करतां सम्यग्दर्शन प्रगटे छे; अने सम्यग्द्रष्टि जीवने सर्वे द्रव्यना पर्यायो
नियत होय छे – एवुं यथार्थ ज्ञान – स्व तरफना पुरुषार्थ सहित होय छे,
तेथी सम्यग्दर्शननुं एक नाम ‘नियत’ छे. (जुओ पृ. ४९ छेल्लेथी बीजी
लीटी)
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