‘‘(७) जे काळ विषे जे कांई जेम थवानुं छे तेम ज थाय एने
पण निश्चय कहीए छीए.
(८) वळी जे जे भावनी जेवी जेवी रीत वMे प्रवर्तना छे (ते
ते) भाव तेवी तेवी रीत पामीने परिणमे – एने पण निश्चय कहे छे.’’
[७] – आ प्रमाणे आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव अने निमित्त-नैमित्तिक
संबंधवाळा पर्यायो सहितना द्रव्योना तमाम पर्यायो क्रमबद्ध होवानुं जेणे
स्वीकार्युं तेने परनी अने विकारोनी कर्ताबुद्धि छूटी जाय छे.
(८) एक ज समये कारणकार्य तथा शाश्वत अने क्षणिक
एवा उपादानना बे भेदो
दरेक पर्यायनी स्वतंत्रता बताववा माटे आ ग्रंथमां कारणकार्यनुं स्वरूप
बहु सारी रीते पृ. ३५ थी ३७ तथा ४० – ४१मां आप्युं छे; तेनो खास
अभ्यास करवानी जरूर छे. आ संबंधमां कह्युं छे के –
(१) ‘‘कारण अने कार्य परिणामथी ज थाय छे.’’ (पृ. ३६)
(२) ‘‘पर्यायनुं कार्य पर्यायथी ज थाय छे.’’ (पृ. ४०)
(३) ‘‘पर्यायनुं कारण पर्याय ज छे, गुण विना ज (अर्थात् गुणनी
अपेक्षा वगर ज) पर्यायनी सत्ता पर्यायनुं कारण छे. पर्यायनुं सूक्ष्मत्व पर्यायनुं
कारण छे. पर्यायनुं वीर्य पर्यायनुं कारण छे. पर्यायनुं प्रदेशत्व पर्यायनुं
कारण छे.’’ (पृ. ९५)
[९] कारण-कार्य संबंधे घणा जीवोनी एक महान भूल ए थाय
छे के द्रव्यमां उपादानशक्ति तो छे पण जो निमित्त आवे तो उपादानमां
कार्य थाय अने न आवे तो न थाय – एम तेओ माने छे. आ पण अनादिथी
चाली आवती बे द्रव्योना एकपणानी मान्यता छे. आ मान्यता अयथार्थ
छे एम बताववा माटे उपादानना क्षणिक उपादान अने शाश्वत उपादान
एम बे प्रकार कह्या छे. (जुओ पृ. ४६) माटे ए बंने प्रकारना उपादान
मानी, दरेक द्रव्यना पर्याय समय समये ते ते समयना ‘क्षणिक उपादान’ना
कारणे थाय छे – एम समजवुं अने निमित्त तो मात्र औपचारिक कारण
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