Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration). Kramabaddha Paryayanu Yatharth Gyan.

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उपचारसंज्ञा थई. वस्तु शक्ति उपचार नथी....ते ज स्वच्छ (त्व) शक्ति
छे, जेम अरीसामां, जो घट पट देखाय छे. तो निर्मळ छे अने जो न
देखाय तो मलिन छे. तेम ज ज्ञानमां जो सकळ ज्ञेय भासे तो निर्मळ
छे, न भासे तो निर्मळ नथी. ज्ञान पोताना द्रव्यप्रदेश वडे तो ज्ञेयमां
जतुं नथी
ज्ञेयमां तन्मय थतुं नथी. जो ए प्रमाणे तन्मय थई जाय तो
ज्ञेयाकारोनो नाश थतां ज्ञाननो विनाश थई जाय, माटे द्रव्यथी (ज्ञानने)
ज्ञेयव्यापकता नथी. ज्ञाननी कोई एवी स्वपरप्रकाशक शक्ति छे ते शक्तिना
पर्याय वडे ज्ञेयोने जाणे छे.’’ (प-. १३
१४)
लक्षण :‘‘ज्ञाननुं लक्षण सामान्यपणे निर्विकल्प छे, ते ज स्वपर
प्रकाशक छे. विशेष एम कहीए छीए के जो केवळ स्वसंवेद ज (अर्थात्
मात्र पोताने जाणनार) छे ते स्व
पर प्रकाशक नथी तो महा दूषण थाय.
स्वपदनी स्थापना परना स्थापनथी छे. परनी स्थापनानी अपेक्षा दूर करवामां
आवे तो स्वनुं स्थापन पण सिद्ध थतुं नथी. माटे स्वपर प्रकाशक शक्ति
मानवाथी सर्व सिद्धि छे.’’ (पृ. १६)
[४] आ उपरथी सिद्ध थयुं के जेओ आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव नथी
मानता तेओ आत्माने मानता ज नथी, तेथी तेमने धर्म अंशे पण प्रगटे
नहि.
[५] केटलाक एम माने छे के आत्मानो स्वभाव सर्वज्ञ छे के नहि
ते झंझटमां आपणे पडवुं नहि, पण आपणे तो रागने पृथक् करवो; तेओने
आत्मानो अनिर्णय छे तेथी तेमने पण जराय धर्म प्रगटे नहीं.
क्रमबद्ध पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान
[६] आत्माने सर्वज्ञ मानतां ए पण सिद्ध थयुं के दरेक द्रव्यना
क्रमबद्ध पर्यायो यथाअवसरे प्रगटे छे. ते पर्याय प्रगट थाय त्यारे जे नैमित्तिक
भाव
शुद्ध के अशुद्ध थाय तेमां निमित्त यथाअवसरे पोतपोताने कारणे
होय ज छे. आ संबंधमां आ ग्रंथना निश्चयअधिकार पृ. ५५मां नीचे
प्रमाणे कह्युं छे
[ ६ ]