Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration). Bhoomika Atmano Sarvagnya Swabhav.

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भूमिका
[१] आ ग्रंथनुं नाम श्री ‘चिद्दविलास’ छे. तेना कर्ता पं. दीपचंदजी
शाह काशलीवाल छे. आ ग्रंथ मूळ हिंदी (-ढूंढारी) भाषामां छे. तेमां
आपवामां आवेला विषयो मुमुक्षुओ सरळताथी समजी शके तेथी गुजराती
भाषामां तेनो अनुवाद प्रसिद्ध करवामां आवे छे.
[२] वस्तुस्वरूप यथार्थपणे समज्या वगर कोई जीव कदी पण धर्म
लेशमात्र करी शके नहि अने वस्तुस्वरूप समजवा माटे द्रव्य-गुण-पर्यायनुं
ज्ञान करवानी जरूरियात होवाथी आ ग्रंथमां तेनुं स्वरूप अनेक पडखांओथी
समजाववामां आव्युं छे. तेमांथी खास लक्षमां राखवा लायक केटलाक विषयो
तरफ मुमुक्षुओनुं ध्यान अहीं खेंचवामां आवे छे
आत्मानो सर्वज्ञ स्वभाव
[३] घणा जीवो कहे छे के आत्मानो सर्वज्ञस्वभाव न होई शके;
अने तेनुं कारण तेओ एवुं कल्पे छे के जो सर्वज्ञने मानीए तो आत्मानो
कांई पुरुषार्थ रहेतो नथी. वळी तेओ एम कहे छे के पर संबंधीनुं आत्मानुं
ज्ञान व्यवहारनये छे अने व्यवहार जूठो छे माटे सर्वज्ञपणुं जूठुं छे. तेमनी
आ मान्यताओ तद्दन मिथ्या छे. एम आ ग्रंथमां नीचेना शब्दोमां कह्युं
छेः
‘जेम अरीसामां घडो, वस्त्र वगेरे देखाय छे, त्यां जे ‘देखवुं’ ते
तो उपचारदर्शन नथी; (तेम ज्ञान) ज्ञेयोने प्रत्यक्ष देखे छे ते तो जूठुं
नथी; परंतु आटलुं विशेष छे के उपयोग ज्ञानमां स्व पर प्रकाशकशक्ति
छे, ते पोताना स्वरूप प्रकाशनमां निश्चळ व्याप्य व्यापक वडे लीन थयेलो
अखंड प्रकाश छे; परनुं प्रकाशन तो छे परंतु व्यापकरूप एकता नथी तेथी
[ ५ ]