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चिद्दविलास
लक्षण सत् छे)’ एम जिनागममां कह्युं छे. त्यां शिष्य प्रश्न१ करे छे
के हे प्रभो! (१) ‘गुणसमुदायो द्रव्यं२ (अर्थात् गुणोनो समुदाय ते द्रव्य
छे)’ एवुं श्री जिनवचन छे, माटे एक सत्तामात्रने (द्रव्यनुं लक्षण
कहेवामां) अनंत गुणनी सिद्धि थती नथी. (२) वळी ‘गुण समुदाय (ते
द्रव्य छे)’ एम कहेतां ‘गुणपर्यायवद् द्रव्यं३ (अर्थात् गुण – पर्यायवाळुं द्रव्य
छे)’ एवी सिद्धि थती नथी अने (३) ‘द्रव्यत्वयोगाद् द्रव्यं (अर्थात्
द्रव्यत्वना संबंधथी द्रव्य छे)’ एवुं पण जो द्रव्यनुं विशेषण (लक्षण)
करो तो अमे कहीए छीए के द्रव्य स्वतःसिद्ध छे४ तेथी ते विशेषण
जुठुं ठरे छे, केमके तेने आधीन द्रव्य नथी. [ – ए रीते उपरनां कोई
लक्षणो निर्बाध सिद्ध थतां नथी – एवो शिष्यनो प्रश्न छे.]
तेनुं समाधान करीए छीएः हे शिष्य! वस्तुमां मुख्य-गौण
विवक्षाथी कथन करवामां आवे छे; त्यां (१) ज्यारे ‘सत्ता’नी मुख्यता
करीने कहीए त्यारे सत्ताने द्रव्यनुं लक्षण कहेवामां आवे छे. केमके सत्ता
‘छे’ एवा लक्षणवाळी छे, तेथी ‘छे’ एवा लक्षणमां ‘गुणोनो समुदाय’,
‘गुण-पर्याय’ अने ‘द्रव्यत्व ए बधुं आवी जाय छे, माटे सत्ताने द्रव्यनुं
लक्षण कहेवामां कोई दोष के विरोध नथी. (२) ‘गुणसमुदाय’ कहेतां
तेमां अगुरुलघु आव्यो. अगुरुलघु गुणमां षट् गुण वृद्धि-हानि (रूप)
पर्याय आवी गयो, तेथी ‘गुणसमुदाय’मां पर्यायनी सिद्धि थई; तेमां ज
गुणोमां द्रव्यत्व गुण पण आवी गयो. माटे
‘गुणसमुदायो द्रव्यं (अर्थात्
गुणोनो समुदाय ते द्रव्य छे)’ ए पण विवक्षाथी प्रमाण छे. ‘गुणपर्यायवद्
द्रव्यं’ अर्थात् गुणपर्यायवाळुं द्रव्य छे)’ एम कहेतां तेमां ‘सत्ता’ अने
‘सर्व गुणपर्याय’ आवी गया, तेथी ‘गुणपर्यायवान् द्रव्य’ ए पण
१. जुओ पंचाध्यायी गा. ९७.
२. पंचाध्यायी गा. ७३.
३. तत्त्वार्थ सूत्र ५ – ३८, प्रवचनसार गा. ९५; पंचाध्यायी गा. ७२.
४. पंचाध्यायी गा. ८.