द्रवीने गुण-पर्यायमां व्यापीने तेने प्रगट करे छे तेथी गुण-पर्यायनुं प्रगट
करवापणुं द्रव्यत्वगुणथी छे. माटे द्रव्यत्वनी विवक्षाथी
स्वतःसिद्ध छे’ ए पण प्रमाण छे; केमके ए चारेय द्रव्यनो स्वतःस्वभाव
छे, पोताना स्वभावरूपे द्रव्य स्वतः परिणमे छे, तेथी स्वतःसिद्ध कहेवाय
छे. [आ रीते ‘सत्ता’, ‘गुणोनो समुदाय’, ‘गुणपर्यायवाळुं’, ने ‘द्रव्यत्वनो
संबंध’ ए चारे लक्षणो प्रमाण छे. तेमांथी कोई एकने ज्यारे मुख्य
करीने कहेवामां आवे त्यारे बाकीना त्रणे लक्षणो पण तेमां गर्भितरूपे
आवी ज जाय छे
छे तेना अनेक भेद छे.
शुद्ध द्रव्यार्थिकनय द्रव्यने शुद्ध बतावे छे; अन्वयद्रव्यार्थिकनय द्रव्यने
गुणादि स्वभावरूप बतावे छे; सत्ता-सापेक्ष द्रव्यार्थिकनय (द्रव्यने)
सत्तारूप बतावे छे; अनंत ज्ञानसापेक्ष द्रव्यार्थिकनय (द्रव्यने) ज्ञानस्वरूप
बतावे छे; दर्शनसापेक्ष द्रव्यार्थिकनय (द्रव्यने) दर्शनरूप बतावे छे;
अनंतगुण सापेक्ष द्रव्यार्थिकनय (द्रव्यने) अनंतगुणरूप बतावे छे
विशेषणो-लक्षणो छे, अने ते बधाना विशेष्यरूप लक्ष्यरूप द्रव्य छे.]