Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration).

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द्रव्य अधिकार[ ३
विवक्षाथी प्रमाण छे. (३) ‘द्रव्यत्वयोगाद् द्रव्यं’ अर्थात् द्रव्यत्वना संबंधथी
द्रव्य छे) ए पण प्रमाण छेकई रीते? (ते कहे छेः) गुणपर्यायोने
द्रव्या वगर द्रव्य न होय तेथी द्रववापणुं द्रव्यत्व गुणथी छे; (द्रव्य पोते)
द्रवीने गुण-पर्यायमां व्यापीने तेने प्रगट करे छे तेथी गुण-पर्यायनुं प्रगट
करवापणुं द्रव्यत्वगुणथी छे. माटे द्रव्यत्वनी विवक्षाथी
‘द्रव्यत्वयोगाद् द्रव्यं’
(अर्थात् द्रव्यत्वना संबंधथी द्रव्य छे)’ ए पण प्रमाण छे. ‘द्रव्य
स्वतःसिद्ध छे’ ए पण प्रमाण छे; केमके ए चारेय द्रव्यनो स्वतःस्वभाव
छे, पोताना स्वभावरूपे द्रव्य स्वतः परिणमे छे, तेथी स्वतःसिद्ध कहेवाय
छे. [आ रीते ‘सत्ता’, ‘गुणोनो समुदाय’, ‘गुणपर्यायवाळुं’, ने ‘द्रव्यत्वनो
संबंध’ ए चारे लक्षणो प्रमाण छे. तेमांथी कोई एकने ज्यारे मुख्य
करीने कहेवामां आवे त्यारे बाकीना त्रणे लक्षणो पण तेमां गर्भितरूपे
आवी ज जाय छे
एम समजवुं.
द्रव्य गुण-पर्यायोने द्रवे छे, गुण-पर्यायो द्रव्यने द्रवे छे, तेथी
तेओ ‘द्रव्य’ एवुं नाम पामे छे. द्रव्यार्थिकनयवडे द्रव्यनां जे विशेषण
छे तेना अनेक भेद छे.
(ते आ प्रमाणेः)
अभेद द्रव्यार्थिकनय द्रव्यने पोताना स्वभावथी अभेद बतावे छे;
भेद कल्पनाः सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय द्रव्यने भेदरूप बतावे छे;
शुद्ध द्रव्यार्थिकनय द्रव्यने शुद्ध बतावे छे; अन्वयद्रव्यार्थिकनय द्रव्यने
गुणादि स्वभावरूप बतावे छे; सत्ता-सापेक्ष द्रव्यार्थिकनय (द्रव्यने)
सत्तारूप बतावे छे; अनंत ज्ञानसापेक्ष द्रव्यार्थिकनय (द्रव्यने) ज्ञानस्वरूप
बतावे छे; दर्शनसापेक्ष द्रव्यार्थिकनय (द्रव्यने) दर्शनरूप बतावे छे;
अनंतगुण सापेक्ष द्रव्यार्थिकनय (द्रव्यने) अनंतगुणरूप बतावे छे
इत्यादि अनेक विशेषणो द्रव्यनां छे ते, द्रव्यमां नयप्रमाण वडे साधवा
[उपर जे अभेद, भेद, शुद्ध इत्यादि प्रकारो कह्या ते बधा द्रव्यना
विशेषणो-लक्षणो छे, अने ते बधाना विशेष्यरूप लक्ष्यरूप द्रव्य छे.]
जुओ, आलापपद्धति पृ. ६९ थी ७२