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चिद्दविलास
अहीं कोई प्रश्न करे छेः हे प्रभो! ‘गुण-पर्यायनो पुंज द्रव्य
छे,’ – एम कहेतां तेमां गुणना लक्षण वडे तो गुणने जाण्या ने पर्यायना
लक्षणवडे पर्यायने जाण्यां द्रव्य तो कोई वस्तु नथी. आम कहेतां तो,
ते द्रव्य, जेम ‘आकाशनुं फूल’ कहेवा मात्र ज छे तेम द्रव्यनुं स्वरूप
पण कहेवा मात्र ज छे ( – एम ठरशे); तेनुं रूप तो गुण-पर्याय छे,
बीजुं कांई नथी. माटे गुण-पर्याय ज छे, द्रव्य नहि?
तेनुं समाधानः जे स्वभाव छे ते स्वभावीथी उत्पन्न छे;
स्वभावी न होय तो स्वभाव न होय, अग्नि न होय तो उष्ण स्वभाव
न होय, सोनुं न होय तो पीळाश – चीकाश – वजन स्वभाव न होय, तेथी
गुण-पर्याय द्रव्यना आश्रये छे. आ संबंधमां तत्त्वार्थसूत्रमां कह्युं छे के
‘द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः१’ द्रव्यना आश्रये गुण छे, गुणना आश्रये गुण
नथी. आ संबंधमां द्रष्टांत आपे छेः २जेम एक गोळी वीश औषधिनी
बनेली छे; परंतु ते वीशेय औषधि गोळीने आश्रये छे (तेथी) गोळीने
‘वीश औषधिनो एक रस’ कहेवाय छे. जो के वीशेय औषधि जुदा –
जुदा स्वादने धारण करे छे तो पण जो गोळी-भावने ( – गोळीना
स्वरूपने) जोईए तो कोई औषधिनो रस ते गोळीथी जुदो नथी, जे
रस छे ते गुटिका भाव विषे रहेला छे. ते वीश औषधिरसनो एक
पुंज ते ज गोळी छे – आम जो के कथनमां भेदविकल्प जेवुं आवे छे
परंतु (वस्तुमां भेद नथी, केमके) एक ज समयमां वीश औषधिरसनो
भाव एक गोळी छे. तेम गुणो पोतपोताना स्वभावने लीधे जुदा जुदा
छे, कोई गुणनो भाव बीजा कोई गुण साथे मळी जतो नथी, ज्ञाननो
भाव, दर्शन साथे न मळे, दर्शननो भाव ज्ञान साथे न मळे, ए प्रमाणे
अनंतगुणो छे तेमांथी कोई गुण बीजा कोई गुण साथे मळतो नथी.
बधा गुणोनो एकांत भाव चेतनानो पुंज द्रव्य छे. जो (द्रव्य वगर)
१. तत्त्वार्थसूत्र ५ – ४१
२. आत्मावलोकन पृ. ९६