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चिद्दविलास
गुण अधिाकार
हवे गुण-अधिकारमां गुणनुं कथन करीए छीएः ‘द्रव्यं द्रव्यात्
गुण्यंते ते गुणाः उच्यंते१’ (अर्थात् एक द्रव्यने बीजां द्रव्योथी भिन्न जणावे
तेने गुण कहेवाय छे.) गुणो वडे द्रव्य जुदां जणाय छे. चेतनगुण वडे
जीव जणाय छे. एक ‘अस्तित्व’ गुण छे, (ते) साधारण छे. (ते
अस्तित्व गुण) महासत्तानी विवक्षाथी बधा (द्रव्यो)मां रहेलो छे; (अने)
अवान्तर सत्ता (नी विवक्षाथी) बधा (द्रव्य) ने पोतपोतानुं अस्तित्व२ छे
त्यां स्वरूपसत्ता त्रण प्रकारे छे३ – द्रव्यसत्ता, गुणसत्ता ने पर्यायसत्ता. तेमां
‘द्रव्य छे’ तेने द्रव्यसत्ता कहीए. द्रव्य (नुं स्वरूप) तो कह्युं. हवे, ‘गुण
छे’ तेने गुण सत्ता कहीए. गुणो अनंत छे. सामान्य विवक्षामां अनंत
ज प्रधान छे. विशेष विवक्षामां जे गुणने प्रधान करीए ते मुख्य छे, (ने)
बीजा गौण छे, तेथी मुख्यता – गौणता (रूप) भेद, विधि – निषेध (रूप)
भेद जाणवा; सामान्य विशेषमां बधुं सिद्ध थाय छे, नय विवक्षा (तथा)
प्रमाण विवक्षा (ते) युक्ति छे. युक्ति प्रधान छे, युक्ति वडे वस्तुने
साधीए. (आ संबंधी) ‘नयचक्र’ ग्रंथमां कह्युं छे केः —
तच्चाणेसणकाले समयं बुज्झेहि जुत्तिमग्गेण ।
णो आराहणसमये पच्चक्खो अणुहवो जह्मा ।।२६८।।
अर्थात् तत्त्वना अवलोकनकाळे पदार्थने युक्तिमार्गथी जाणवो
जोईए, परंतु आराधन वखते तो प्रत्यक्ष अनुभव होवाथी त्यां युक्तिनी
जरूर नथी.
१. आलापपद्धति पृ. ८७.
२. प्रवचनसार गा. ९६.
३. प्रवचनसार गा. १०७.