गुण अधिकार[ ७
माटे नय (अने) प्रमाण (ते) युक्ति छे एम जाणवुं.
‘गुणसत्ता’मां अनंत भेद छे ते गुणना अनंत भेद छे. एक
सूक्ष्मगुणना अनंत पर्यायो छे, ज्ञानसूक्ष्म, दर्शनसूक्ष्म ए ज रीते बधा
गुणो सूक्ष्म जाणवा; सूक्ष्म (गुण)ना पर्यायो छे. – सूक्ष्मगुणनो ज्ञानसूक्ष्म
पर्याय ज्ञायकतारूप अनंतशक्तिमय नृत्य करे छे; एक ज्ञान – नृत्यमां
अनंत गुणनो घाट जाणवामां आव्यो छे तेथी (ते अनंत गुणनो घाट)
ज्ञानमां छे; अनंत गुणना घाटमां एकेक गुण अनंतरूपे थईने पोताना
ज लक्षणने धारे छे, ते कळा छे; एकेक कळा गुणरूप होवाथी अनंतरूपने
धारे छे; एकेक रूप जे रूपे थयुं तेनी अनंत सत्ता छे; एकेक सत्ता अनंत
भावने धरे छे; एकेक भावमां अनंत रस छे; एकेक रसमां अनंत
प्रभाव छे. ✽ – आ प्रकारे आवा भेदो अनंत सुधी जाणवा.
एकेक गुण साथे बीजा गुणने लगाडवाथी अनंत सप्तभंगी साधी
शकाय छे (अर्थात् एक गुणमां बीजा गुणनी अपेक्षा लईने तेमां अनंत
सप्तभंगी ऊतरे छे). तेनुं कथनः – (अहीं सत्ता गुण साथे ज्ञान गुणनी
अपेक्षा लईने सप्तभंगनुं स्वरूप विचारे छे)ः –
सत्ता ज्ञानरूप छे के नथी? – (१) जो सत्ता ज्ञानरूप कहीए तो
(ज्ञानगुण सत्तागुणना आश्रये ठरे, अने एम थतां), ‘द्रव्याश्रया निर्गुणा
गुणा’१ आ सूत्रमां गुणमां गुणनी मना करी छे ते सूत्र जुठुं ठरे छे.
(अने) (२) जो (सत्ताने) ज्ञानरूप न मानीए तो (ते) जड ठरे छे.
तेथी सप्तभंग साधीए छीए. ते आ प्रमाणेः –
(१) केवळ चैतन्यनुं अस्तित्व छे एम ज्यारे कहीए त्यारे (सत्ता)
ज्ञानरूप छे (स्यात् अस्ति).
✽विस्तार – वर्णन माटे जुओ; आज ग्रंथकर्ताकृत अध्यात्म पंचसंग्रह – सवैया
टीकाः पृष्ठ. १ – २.
१. तत्त्वार्थसूत्र ५ – ४१.