८ ]
चिद्दविलास
(२) केवळ सत्तालक्षणसापेक्ष, अन्यगुणनिरपेक्ष लईए त्यारे (सत्ता)
ज्ञानरूप नथी. (स्यात् नास्ति).
(३) बंने विवक्षाओमां (सत्ता कथंचित्) ज्ञानरूप छे, नथी. (स्यात्
अस्ति – नास्ति).
(४) (सत्तानो) अनंत महिमा वचनगोचर नथी तेथी अवक्तव्य छे.
[अथवा सत्ता ज्ञानरूप छे अने ज्ञानरूप नथी एवा बंने प्रकार
एकसाथे कही शकाता नथी माटे स्यात् अवक्तव्य छे.] (स्यात्
अवक्तव्य).
(५) ‘(सत्ता) ज्ञानरूप छे’ एम कहेतां ‘(सत्ता ज्ञानरूप) नथी’ एवा
भंगनुं कथन बाकी रही जाय छे तेथी सत्ता ज्ञानरूप छे; परंतु
अवक्तव्य छे. (स्यात् अस्ति अवक्तव्य)
(६) ‘(सत्ता) ज्ञानरूप नथी’ एम कहेतां ‘(सत्ता) ज्ञानरूप छे’ एवा
भंगनुं कथन बाकी रही जाय छे तेथी (सत्ता ज्ञानरूप नथी अने)
अवक्तव्य छे. (स्यात् नास्ति अवक्तव्य)
(७) अस्ति – नास्ति बंने भंग एक साथे कही शकाता नथी तेथी (सत्ता
ज्ञानरूप छे – ज्ञानरूप नथी ने) अवक्तव्य छे (स्यात् अस्ति – नास्ति
अवक्तव्य).
आ प्रमाणे चैतन्य वडे सत्ताना सात भंग ज्ञान साथे सधाय छे.
ए ज प्रमाणे चैतन्य वडे सत्ताना सात भंग दर्शन साथे साधवा; तथा
ए ज प्रमाणे वीर्य साथे, प्रमेयत्व साथे, तेमज अनंत गुणो साथे
(साधवा) चेतनानी जेम बधा गुणो साथे (सत्ताना सात भंग) साधीए
त्यारे (सत्तामां) अनंत सात भंग सधाय छे. वळी सत्तानी जग्याए
वस्तुत्व मूकीने, तेनी साथे सत्तानी जेम साधीए त्यारे अनंत वार सात
भंग थाय छे. ए ज रीते वस्तुत्व साथे. एवी ज रीते एकेक गुण साथे
अनंतवार जुदा जुदा साधवा. ए रीते अनंत गुण सिद्ध थाय छे.