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चिद्दविलास
सम्यक्त्वनी प्रधाानता
जीवमां गुणो अनंत छे; तेमां सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान, चारित्र,
सुख ए विशेषरूप छे – प्रधान छे. वस्तुनो यथावत् निश्चय थवो तेने
सम्यक् कहीए. ते १अनंत प्रकारे छे. सम्यक् निर्विकल्प दर्शन (उपयोग)
तेने कहीए के जे देखवा – मात्र परिणम्युं.
सम्यक् सविकल्प दर्शन (उपयोग) तेने कहीए के जे स्वज्ञेयभेदोने
जुदा जुदा देखे छे ने परज्ञेयभेदोने जुदा देखे छे.
(जे) ज्ञान जाणवामात्र परिणम्युं ते निर्विकल्प सम्यग्ज्ञान छे.
(जे ज्ञान) स्वज्ञेयभेदने जुदा जाणे छे ने परज्ञेयभेदने जुदा
जाणे छे तेने सविकल्प सम्यग् ज्ञान कहीए.
(जे) आचरणरूप परिणम्युं तेने निर्विकल्प सम्यक्चारित्र कहीए.
(जे) स्वज्ञेयने आचरे छे ने परज्ञेयना त्यागने आचरे छे तेने
सविकल्पसम्यक्चारित्र कहीए. इत्यादि घणा भेदो छे.
अहीं कोई प्रश्न करे केः – सम्यक्त्व उपयोग छे के नहि? जो
उपयोग होय तो उपयोगना बार भेद केम कह्या? आठ ज्ञानना अने
चार दर्शननां; (तेमां) सम्यक्त्व तो न लाव्या? जो सम्यक्त्व उपयोग
नथी तो प्रधान कई रीते संभवे छे?
तेनुं समाधान आ सम्यक्त्व गुण छे ते प्रधान गुण छे; केमके
१. अहीं दर्शन अपेक्षाए बे भेद, ज्ञान अपेक्षाए बे भेद ने चारित्र अपेक्षाए
बे भेद – ए रीते सम्यक्त्वना छ भेद समजाव्या छे. अने ए रीते अनंत
गुणोनी अपेक्षाए सम्यक्त्वना अनंत भेद पडे छे, तेथी अहीं सम्यक्त्वने
अनंत प्रकारे कह्युं छे, एम समजवुं.