Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सम्यक्त्वनी प्रधानता[ ११
सर्व गुणो सम्यक् आनाथी छे, सर्व गुणोनुं अस्तित्वपणुं आनाथी छे,
सर्व गुणोनो निश्चय यथाअवस्थितभाव (आनाथी) छे. निश्चयनुं नाम
सम्यक्त्व छे के ज्यां व्यवहार, भेद, विकल्प नथी, अशुद्धता नथी, निज
अनुभव स्वरूप सम्यक् छे.
ज्ञान जाणवामात्र परिणम्युं (ते) निर्विकल्प सम्यग् ज्ञान छे. ज्ञान
ज्ञेयोने जाणे छे ते असद्भूतउपचरितनयथी छे.
दर्शन देखवारूप परिणम्युं. (तेने). निर्विकल्प सम्यक् दर्शन कहीए
(दर्शन) स्वज्ञेयने जुदां देखे छे ने परज्ञेयने जुदां देखे छे, ते भेद
व्यवहारथी [छे] एम कहीए. असद्भूत उपचरितनयथी [दर्शन] परने
देखे छे. ते निर्विकल्परूप ज्ञान अने दर्शन सम्यक् थयां ते सम्यक् (त्व)
गुणथी सम्यक् थयां ए रीते अनंत [गुणो] सम्यक् थया ते सम्यक्
गुणनी प्रधानताथी थया.
शुद्ध द्रव्यार्थिकनयथी आ जीव अनादिथी केवलज्ञानादि अनंत
गुणोने धारण करे छे, परंतु ज्यां सुधी सम्यक् न प्रगट्युं त्यां सुधी
[ते गुणो] अशुद्ध रह्या. [स्व पर्यायना पुरुषार्थरूप] काळलब्धि *पामीने
ज्यारे सम्यक्त्व थयुं त्यारे सम्यक्नी शुद्धताथी ते गुणो विमळ थया;
तेथी प्रथम सम्यक्त्व गुण थयो, पछी बीजा गुणो थया; सिद्ध
भगवानना गुणोमां पण प्रथम सम्यक्त्व ज कह्युं; तेथी सम्यक्त्व प्रधान
छे. उपयोग तो दर्शन अने ज्ञान छे, ज्यां ‘सम्यग्दर्शन’ कह्युं होय त्यां
‘सम्यक्त्व’ समजवुं अने ज्यां ‘दर्शन’ कह्युं होय त्यां ‘देखवारूप दर्शन’
समजवुं. वस्तुना निश्चयरूप, अनुभवरूप सम्यक्त्व छे ते प्रधान छे.
*जुओ, मोक्षमार्ग प्रकाशकमोक्ष साधनमां पुरुषार्थनी मुख्यता, पृ. ३११