सर्व गुणोनो निश्चय यथाअवस्थितभाव (आनाथी) छे. निश्चयनुं नाम
सम्यक्त्व छे के ज्यां व्यवहार, भेद, विकल्प नथी, अशुद्धता नथी, निज
अनुभव स्वरूप सम्यक् छे.
व्यवहारथी [छे] एम कहीए. असद्भूत उपचरितनयथी [दर्शन] परने
देखे छे. ते निर्विकल्परूप ज्ञान अने दर्शन सम्यक् थयां ते सम्यक् (त्व)
गुणथी सम्यक् थयां ए रीते अनंत [गुणो] सम्यक् थया ते सम्यक्
गुणनी प्रधानताथी थया.
[ते गुणो] अशुद्ध रह्या. [स्व पर्यायना पुरुषार्थरूप] काळलब्धि *पामीने
तेथी प्रथम सम्यक्त्व गुण थयो, पछी बीजा गुणो थया; सिद्ध
भगवानना गुणोमां पण प्रथम सम्यक्त्व ज कह्युं; तेथी सम्यक्त्व प्रधान
छे. उपयोग तो दर्शन अने ज्ञान छे, ज्यां ‘सम्यग्दर्शन’ कह्युं होय त्यां
‘सम्यक्त्व’ समजवुं अने ज्यां ‘दर्शन’ कह्युं होय त्यां ‘देखवारूप दर्शन’
समजवुं. वस्तुना निश्चयरूप, अनुभवरूप सम्यक्त्व छे ते प्रधान छे.