Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration). Gyan gunanu Swaroop.

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१२ ]
चिद्दविलास
ज्ञानगुणनुं स्वरुप
हवे ज्ञानगुणनुं स्वरूप कहीए छीए. ज्ञान जाणपणुं ए रीते
निर्विकल्प छे, ते स्वज्ञेयने जाणे छे; ते परज्ञेयोने जाणवामां, ज्ञान
निश्चयथी जाणे तो ज्ञान जड थाय
तादात्म्यवृत्तिथी एक थई जाय; तेथी
निश्चयथी तो न जाणे, उपचारथी जाणे तो सर्वज्ञता कई रीते [बने]?
जो उपचारमात्र तो जूठो छे तो सर्वज्ञ[पणुं] जूठुं थाय, ते न बने.
तेनुं समाधाान :जेम अरीसामां घडोवस्त्र वगेरे देखाय छे,
त्यां जे ‘देखवुं’ ते तो उपचार दर्शन नथी, [ तेम ज्ञान] ज्ञेयोने प्रत्यक्ष
देखे छे ते तो जूठुं नथी; परंतु आटलुं विशेष छे के उपयोग ज्ञानमां
स्व
परप्रकाशक शक्ति छे, ते पोताना स्वरूपप्रकाशनमां निश्चळ
व्याप्यव्यापक वडे लीन थयेलो अखंड प्रकाश छे; परनुं प्रकाशन तो छे,
परंतु व्यापकरूप एकता नथी [अर्थात् परने जाणतां ज्ञान पर साथे
एकमेक थतुं नथी], तेथी उपचार संज्ञा थई. वस्तुशक्ति उपचार नथी
ए वात विशेष लखीए छीएः
कोई एक मिथ्यावादी एम माने छे के ज्ञेयोनुं जाणपणुं छे ते
ज अशुद्धता छे, ज्यारे ते मटशे त्यारे अशुद्धता मटशे परंतु एम तो
नथी, केमके ज्ञान विषे एवी स्वपरप्रकाशकता पोताना सहज भावथी
छे, ते अशुद्धभाव नथी. अरूपी आत्मप्रदेशोनो प्रकाश लोकअलोकना
आकाररूप थईने मेचक उपयोग [अनेकाकार उपयोग] थयो छे. आ
"
१. जुओ, समयसार गा. ३५६ थी ३६५ उपर जयसेनाचार्यनी टीकामां
पृ. ४६६४६७.
२. जुओ, समयसार कलश२५१;