ज्ञानगुणनुं स्वरूप[ १३
संबंधमां कह्युं छे के – नीरुपात्मप्रदेशप्रकाशमानलोकालोकाकारमेचकोपयोग-
लक्षणा स्वच्छत्वशक्तिः’ [अर्थात् अमूर्तिक आत्मप्रदेशोमां प्रकाशमान
लोकालोकना आकारोथी मेचक [अर्थात् अनेक आकाररूप] एवो उपयोग
जेनुं लक्षण छे एवी स्वच्छत्व शक्ति छे१].
ते ज स्वच्छ[त्व] शक्ति छे, जेम अरीसामां जो घट – पट देखाय
तो निर्मळ छे; अने जो न देखाय तो मलिन छे, तेम ज ज्ञानमां जो
सकळ ज्ञेय भासे तो निर्मळ छे, न भासे तो निर्मळ नथी. ज्ञान पोताना
द्रव्य – प्रदेशवडे तो ज्ञेयमां जतुं नथी – ज्ञेयमां तन्मय थतुं नथी. जो ए
प्रमाणे तन्मय थई जाय तो ज्ञेयाकारोनो नाश थतां ज्ञाननो विनाश थई
जाय.२ माटे द्रव्यथी [ज्ञानने] ज्ञेय व्यापकता नथी. ज्ञाननी कोई [एवी]
स्व-परप्रकाशक शक्ति छे, ते शक्तिनी पर्यायोवडे ज्ञेयोने जाणे छे.
वस्तुनुं स्वरूप ज्ञानमात्र छे; ते संबंधमां चार प्रश्नो उपजे छे,
[१] एक तो प्रश्न ए के ज्ञान ज्ञेयना अवलंबने छे के पोताना
अवलंबने छे?
[२] बीजो प्रश्न एम के ज्ञान एक छे के अनेक छे?
[३] त्रीजो प्रश्न एवो छे के ज्ञान अस्तिरूप छे के नास्तिरूप
छे?
[४] चोथो प्रश्न एवो छे के ज्ञान नित्य छे के अनित्य छे?३
तेनुं समाधान आ प्रमाणे छेः –
[१] जे जेटली वस्तु छे तेटली द्रव्य – पर्यायरूप [छे], ज्ञान पण
१. गुजराती समयसार पृ. ५०४;
२. समयसार कलश. २५५ – ६
३. समयसार कलश टीका पृ. २८२ तथा समयसार गुजराती पृ. ४८८ थी
५००.