१८ ]
चिद्दविलास
हवे ज्ञाननुं क्षेत्र कहीए छीए.
३. क्षेत्र – (ज्ञाननुं क्षेत्र) असंख्यात प्रदेश भेद विवक्षामां कहीए.
अने अभेदमां जाणनमात्र वस्तुनुं सत्त्व (जेटलामां छे तेटलुं) क्षेत्र छे.
४. काळ – जेटली ज्ञाननी मर्यादा छे तेटलो ज्ञाननो काळ छे.
(सामान्य अपेक्षाए ज्ञाननो काळ अनादि अनंत छे अने विशेष
अपेक्षाए ज्ञाननो काळ एक समय छे.)
५. संख्या – ज्ञान मात्र वस्तु सामान्यताथी एक छे (अने)
पर्यायथी अनंत छे, शक्ति अनंत छे. भेद कल्पनामां दर्शनने जाणे ते
‘दर्शननुं ज्ञान’ (एवुं) नाम पामे, सत्ताने जाणे ते ‘सत्तानुं ज्ञान’ (एवुं)
नाम पामे; तेथी कल्पना करतां भेद संख्या छे. निर्विकल्प अवस्थामां
एक छे. आ संख्या जो प्रदेशमां गणीए तो ज्ञानना असंख्यात प्रदेशो
छे.
६. स्थानस्वरुप – ज्ञानमात्र वस्तुनुं स्थानक ज्ञानमात्र वस्तुमां छे
तेथी (ज्ञान) ज्ञानस्वरूप पोताना स्थानकमां छे, ते ज स्थानस्वरूप
कहीए. (जे ज्ञान,) दर्शनने जाणे ते दर्शनने जाणवानुं स्थानस्वरूप
दर्शननुं ज्ञान छे – एवी भेद कल्पना ऊठे छे, ज्ञाता जाणे छे.
७. फळ – ज्ञाननुं फळ छे ते ज्ञान छे, एक तो एम छे, केमके
एकनुं फळ बीजुं न होय, (कोई गुण) निजलक्षणने न तजे, गुणमां
गुण होय नहि, माटे (ज्ञाननुं) निर्विकल्प निजलक्षण फळ छे. जेम पोते
पोताने संप्रदान करे तेम (ज्ञाननुं) पोतानुं फळ स्वभावप्रकाश छे. बीजुं,
ज्ञाननुं फळ ✽
सुख कहीए. बारमा गुणस्थाने मोह गयो, पण अनंत
✽प्रवचनसार गा. ५४ हेडिंग तथा गा. ५९-६०-६१
ज्ञान समान न आन जगत में सुखको कारण ।
यह परमामृत जन्मजरामृतु-रोग-निवारण ।।
छहढाळाः ४ – ३