कई रीते रह्युं?
थया तेथी सुख छे; परिणाम एक समय ज रहे छे तेथी समयमात्र
परिणामनुं सुख छे, ज्ञाननुं सुख युगपत् छे. परिणामनुं (सुख) समय
मात्रनुं छे (तेथी) समय समयना परिणाम ज्यारे आवे त्यारे व्यक्त
सुख थाय. भविष्यकाळना परिणाम ज्ञानमां आव्या, पण थया नथी,
तेथी परिणामनुं सुख क्रमवर्ती छे, ते तो समये समये नवुं नवुं थाय
छे. ज्ञाननो उपयोग युगपत् छे, ते उपयोग पोत पोताना लक्षणने
धारण करे छे तेथी परिणामनुं सुख नवुं कहीए (अने) ज्ञाननुं सुख
युगपत् छे. ज्ञाननी अन्वय अने युगपत्रूप शक्ति छे, तेना पर्यायनी
व्यतिरेकरूप शक्ति (छे, ते) व्यापकरूप थईने अन्वयरूप थाय छे*.
परिणमेलुं ज्ञन कहे छे, अथवा ज्ञानरूपे ज्ञान परिणमे छे त्यारे व्यतिरेक
शक्तिरूप ज्ञान थाय छे. अन्वय-व्यतिरेक परस्पर एक-बीजारूप थाय
छे (अर्थात् ते बंने अविनाभावीरूप छे,) तेथी (ज्ञाननुं) परम लक्षण
जे वेदकता, तेमां (ते बंने) छे. वेदकता (जाणवापणुं) परिणामथी (छे);
परिणाम, द्रव्यत्वगुणना प्रभावथी द्रव्यगुणना आकारे थाय छे (अने)
द्रव्य-गुणो पर्यायना आकारे थाय छे. आ प्रमाणे ज्ञानना घणा भेदो
सधाय छे. (अहीं) ज्ञाननुं लक्षण जाणपणुं छे ते निश्चित थयुं. तेनो
बीजो विस्तार छे.
छे.)