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चिद्दविलास
गुणमां असंख्य प्रदेश. ते एक प्रदेश निरावरण थतां सर्व प्रदेशो
निरावरण थया; एकने जाणे ते सर्वने जाणे, सर्वने जाणे ते एकने
जाणे,१ एम आगममां कह्युं छे; [तेथी] निरावरण एक दर्शनने
जाणवामां सर्वदेश ज्ञान सिद्ध थाय छे.
अहीं कोई प्रश्न करे छे के – दर्शन निराकार छे, तेने जाणवाथी
ज्ञान पण निराकार थयुं?
तेनुं समाधाान : – दर्शन गुण देखवामात्र लक्षणने धारण करे छे;
अने सर्वदर्शित्व शक्तिने धारण करे छे ए दर्शननुं विशेष छे; तेने
(ज्ञान) जाणे छे. (तेथी दर्शनने जाणनारुं ज्ञान निराकार नथी) – एक
तो आ समाधान छे. बीजुं विशेष ए छे के ज्ञाननी सर्वज्ञ शक्तिमां
सर्वने जाणतां दर्शन पण आव्युं; बधा गुणोनुं जाणपणुं मुख्य थयुं तेमां
दर्शन पण आवी गयुं, पण ते ज्ञान ते रूप (थयुं) – एम न कहीए
(अर्थात् अनंत गुणो साथे दर्शनने जाणवा छतां ज्ञान ते दर्शनरूपे थई
जतुं नथी) ज्ञाननी शक्ति युगपत् – बधाने एक साथे – जाणवानी छे तेथी
(ज्ञानने) जुदुं विशेषण (गुण) लेवुं. जेम पांच रस जेमां गर्भित छे
एवो रस कोईए चाख्यो, त्यां एम कहेवानुं बनतुं नथी के आ पुरुषे
मधुर रस चाख्यो. तेम दर्शन अनंत गुणोमां आवी गयुं, एक (जुदा
दर्शन-गुण)नी कल्पना करवानुं बनतुं नथी – एम जाणवुं.
ज्ञान पोताना सत्पणाथी सत्तारूप छे, ज्ञान पोताना सूक्ष्मत्वथी
सूक्ष्मरूप छे, ज्ञान पोताना वीर्यथी अनंत बळरूप छे, ज्ञान पोताना
अगुरुलघुत्वथी अगुरुलघुरूप छे – ए प्रमाणे अनंत गुणोनां लक्षण
ज्ञानमां आवे छे. ज्ञान त्रिकाळवर्ती सर्वने एक समयमां युगपत् जाणे छे.
त्यां, आ प्रश्न ऊठे छे के – आत्माने भविष्यकाळना समय-
समयमां जे परिणामद्वारा जे सुख थशे ते तो ज्ञानमां आवी प्रतिभास्युं,
१. प्रवचनसार गा. ४८ – ४९.