ज्ञानगुणनुं स्वरूप[ १५
२ – लक्षण, ३ – क्षेत्र, ४ – काळ, ५ – संख्या, ६ – स्थानस्वरूप अने ७ – फळ
ए सात भेद कहीए छीएः –
१. नाम – ‘ज्ञान’ एवुं नाम शा माटे कहेवुं? [ ते कहे छे.]
‘ज्ञानोति ज्ञानं [अर्थात् जे जाणे छे ते ज्ञान छे]’ एना वडे जाणवामां
आवे छे तेथी ज्ञान कहीए; जे [पोते] जाणे छे [अथवा] जेना वडे
जीव जाणे छे, तेथी [तेनुं] ‘ज्ञान’ नाम छे.
२. लक्षण – ज्ञाननुं लक्षण सामान्यपणे निर्विकल्प छे, ते ज स्व –
पर प्रकाशक छे. विशेष एम कहीए छीए [के] जो [ज्ञान], केवळ
स्वसंवेदज [अर्थात् मात्र पोताने ज जाणनार] छे, ते स्व – पर प्रकाशक
नथी तो महा दूषण थाय; स्वपदनी स्थापना परना स्थापनथी छे. परनी
स्थापनानी अपेक्षा दूर करवामां आवे तो स्वनुं स्थापन पण सिद्ध थतुं
नथी. माटे स्व – पर प्रकाशक शक्ति मानवाथी सर्व सिद्धि छे, आमां कांई
संदेह नथी.
[प्रश्न : – ] ज्ञान अनंत गुणोने जाणे छे, एक दर्शनने पण ते
जाणे छे, दर्शनमात्रने जाणतुं होवाथी [ते] एकदेश ज्ञान छे के सर्वदेश
ज्ञान छे? [१] [मात्र दर्शनने जाणनारा ज्ञानने] जो सर्वदेश कहो तो
ते सर्वदेश संभवतुं नथी [कारण के] ते मात्र दर्शनने ज जाणनारुं न
रह्युं पण बधाने जाणनारुं ठर्युं. [२] [अने जो ते ज्ञानने] एकदेश
अंशकल्पना छे, [एम कहो तो] ते केवळज्ञानमां संभवती नथी.
तेनुं समाधाान : – दर्शनमां सर्वदर्शित्व शक्ति छे,१ तेथी तेने
जाणतां सर्व जाण्युं, – एक तो आ न्याय छे. [वळी] युगपत् सर्व गुणोने
जाणतां तेमां दर्शनने पण जाण्युं, युगपत् जाणवामां विकल्प नथी. एक
ज निरावरण जाणवाथी सर्व गुणो निरावरण जाण्या. जेम एक
आत्माना असंख्य प्रदेश, प्रदेश – प्रदेशमां अनंत गुण [अने] गुण –
१. गुज० समयसार पृ. ५०४;