२४ ]
चिद्दविलास
अभव्यनां दर्शन – ज्ञान निश्चयथी सिद्धसमान छे, (परंतु) तेना परिणाम
कदी सुलटा थता नथी तेथी तेना दर्शन-ज्ञान सदा अशुद्ध रहे छे;
भव्यना परिणाम शुद्ध थाय छे तेथी तेना दर्शन-ज्ञान पण शुद्ध थाय
छे. आ न्याये परिणामनी निजवृत्ति थतां स्वभावगुणरूप वस्तुमां
उपयोगनी स्थिरता ते चारित्र छे.
(परिणाम) द्रव्यने द्रवे छे, परिणाममां द्रवत्व शक्ति छे ते (द्रव्य-
गुणने) द्रवे छे. द्रव्यमां द्रवत्व शक्ति छे (तेथी) ते गुण — पर्यायोने द्रवे
छे. अने गुणमां द्रवत्व शक्ति छे (तेथी) ते द्रव्य — पर्यायोने द्रवे छे.
आ द्रवत्व शक्ति द्रव्य-गुण-पर्यायमां छे. परिणाम गुणमां द्रवीने व्यापे
त्यारे गुणद्वारा परिणति थई (अने) ते वखते गुण पोताना लक्षणथी
प्रकाशरूप थयो. (परिणाम द्रव्यमां द्रवीने व्यापे त्यारे) द्रव्यरूप परिणति
थई (अने) ते वखते द्रव्यनुं लक्षण प्रगट थयुं; माटे परिणाम विना
द्रवता ( – द्रववापणुं) होय नहि, द्रव्या विना व्यापकता होय नहि; तेथी
व्यापकता विना द्रव्यनो प्रवेश गुण-पर्यायमां थाय नहि; तेथी (द्रव्य-गुण-
पर्यायनी) अन्योन्य सिद्धि थाय नहि, माटे अन्योन्य सिद्धिनुं निमित्त
परिणाम सर्वस्व छे.
परिणामवडे आत्मामां ज्ञान-दर्शननी स्थिति थई ते चारित्र छे;
वेदकता – विश्राम, स्वरूपमां थयो ते विश्रामरूप चारित्र छे. (ते चारित्र)
वस्तुना – गुणना स्वरूपने आचरणवडे प्रकट करे छे, तेथी आचरणरूप
चारित्र छे. चारित्र सर्वस्व गुण – द्रव्यनुं छे. सत्ताना अनंत भेद छे.
अनंत गुणना अनंत सत्त्व थयां, ज्ञाननुं सत्त्व, दर्शननुं सत्त्व – ए प्रमाणे
(अनंत गुणोनुं) सत्त्व जाणो, ते अनंत सत्त्वनुं आचरणविश्राम,
स्थिरताभाव चारित्रे कर्या.
अहीं प्रश्न थाय छे के – ज्ञाननुं चारित्र एकदेश छे के सर्वदेश?
तेनुं समाधाान : – ज्ञान एक गुण छे, परंतु ज्ञान विषे समस्त गुणोने
जाणे (एवी) सर्वज्ञ ज्ञानशक्ति ज्ञानमां छे, तेथी ज्ञानना आचरणथी