Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration). Charitranu Swaroop.

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[ २३ ]
चारित्रनुं स्वरुप
हवे चारित्रनुं कथन कहीए छीएः
आचरणनुं नाम चारित्र छे. (जे) आचरे अथवा जेना वडे
आचरण करवामां आवे तेने चारित्र कहीए. चारित्र परिणामवडे वस्तुने
आचरीए ते चारित्र (छे). चरण मात्र चारित्र छे, आ निर्विकल्प छे;
निजाचरण ज छे, परनो त्याग छे ए पण चारित्रनो भेद छे. द्रव्य
विषे स्थिरता-विश्राम-आचरणने द्रव्याचरण कहीए; गुण विषे स्थिरता-
विश्राम-आचरणने गुणाचरण कहीए तेनुं विशेष कथन कहीए छीएः
सत्तागुण विषे परिणामनी स्थिरता (ते) सत्तानुं चारित्र छे.
कोई प्रश्न करे के स्थिर (तो) अविनाशीनुं नाम छे. परिणामनी
प्रवृत्ति स्वरूपमां आवे ते चारित्र छे, परिणाम समय स्थायी छे, तो
(स्थिरपणुं) कई रीते बने?
तेनुं समाधाान :ज्ञान दर्शन स्वरूपमां स्थिरतारूपे स्थितिएवी
स्थिरतानुं नाम पण चारित्र छे. ए चारित्र परिणामनी प्रवृत्ति स्वरूपमां
थतां ज्ञान-दर्शननी स्थिति स्वरूपमां थाय छे. परिणाम वस्तुने वेदीने
स्वरूपमां ऊठे छे त्यां स्वरूपनो लाभ थाय छे, पछी ते ज (परिणाम)
वस्तुमां लीन थाय छे, उत्तर
परिणामनुं कारण छे. वस्तुनोद्रव्य
गुणनोआस्वाद लईने (परिणाम) वस्तुमां लीन थया त्यारे वस्तुनुं
सर्वस्व एनाथी प्रगट थयुं, व्यापकपणाथी वस्तुना सर्वस्वनी मूळ
स्थितिनो निवास वस्तु थई. ते पण परिणामनी लीनतामां जणाई गयुं.
तेथी ज्ञानदर्शननी शुद्धता परिणामनी शुद्धताथी छे. जेमके