Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration). Gunani Siddhi Paryayathi Thay Chhe.

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चिद्दविलास
गुणनी सिद्धि पर्यायथी ज छे
ज्ञाननुं लक्षण जाणपणुं छे; ज्ञान जाणपणारूप परिणमे छे.
अहीं प्रश्न थाय छे केज्ञाननी सिद्धि जाणपणाथी छे के परिणमनथी
छे? तेनुं समाधानजाणपणा विना तो ज्ञाननो अभाव थाय, (अने)
परिणमन विना जाणपणुं होय नहि. जाणपणुं गुण छे, परिणमवुं ते
पर्याय छे. पर्याय विना गुण होय नहि अने गुण विना पर्याय होय
नहि, पर्यायवडे गुण छे, अविनाभावी छे.
त्यां फरी प्रश्न उपजे छे केपर्याय क्रमवर्ती छे अने गुण युगपत्
छे, तो कर्मवर्तीथी युगपत् गुणनी सिद्धि कई रीते थाय छे? तेनुं
समाधान
गुणनी सिद्धि पर्यायथी ज छेते कहीए छीएः
अगुरुलघुगुणनी सिद्धि पर्याय विना थती नथी; ए ज प्रमाणे सर्व
(गुणोमां) जाणो. अगुरुलघुगुणनो विकार (परिणमन) ते षट्गुणी
वृद्धि
हानि छे. जो षट्गुणी वृद्धिहानि न होय तो अगुरुलघु न
होय! जो सूक्ष्म गुणनो पर्याय न होय तो सूक्ष्म (गुण) न होय.
ज्ञानसूक्ष्म, दर्शनसूक्ष्म ते सूक्ष्म(गुण)ना पर्याय छे. तेथी पर्याय साधक
छे, गुण सिद्धि (साध्य) छे.
षट्गुणी वृद्धिहानिनुं स्वरूप शुं छे? एवो प्रश्न थयो. तेनुं
समाधाान :सिद्ध भगवान छे तेमने विषे षट्गुणी वृद्धिहानिनुं
स्वरूप कहीए छीएः
अहीं मात्र द्रष्टांतरूप कथन छे, अगुरुलघुगुणनुं सूक्ष्म परिणमन तो
आगमगम्य छे, वचन अगोचर छे. जुओ, आलापपद्धति पृ. ८९