गुणनी सिद्धि पर्यायथी ज छे[ २७
१. सिद्ध परमेश्वर पोतानी शुद्ध सत्तास्वरूपे परिणमे छे, एम कहीए
त्यारे तेमां अनंतगुणमांथी एक सत्ता गुण आव्यो, (तेथी) अनंत
गुणनो अनंतमो भाग थयो. ते परिणमननी जे वृद्धि (उत्पाद) तेने
अनंतभागवृद्धि कहीए.
२. भगवानमां असंख्य गुणनी विवक्षा लईने एम कहेवुं के भगवान
द्रव्यत्व गुणरूप परिणमे छे. (त्यारे) तेमां असंख्यमांथी एक (गुण)
आव्यो; त्यां असंख्यातमो भाग थयो. ते परिणमननी वृद्धि ते
असंख्यातभागवृद्धि कहीए.
३. सिद्ध भगवानमां आठ गुण छे, तेमां कहेवुं के सिद्ध समकितरूपे
परिणमे छे. त्यां (आठ गुणमांथी एक गुण आव्यो एटले)
संख्यातमो भाग थयो, (ते परिणमननी वृद्धि) ते संख्यातभागवृद्धि
छे.
४. ते सिद्ध आठे गुणरूप परिणमे छे, त्यां आठ गुण परिणमननी
वृद्धि थई ते संख्यातगुणीवृद्धि कहीए.
५. सिद्ध असंख्यात गुणरूपे परिणमे छे त्यां असंख्यगुण परिणामनी
वृद्धि थई ते असंख्यगुणवृद्धि कहीए.
६. सिद्ध अनंतगुणरूप परिणमे छे त्यां अनंतगुण परिणमननी वृद्धि
थई ते अनंतगुणी वृद्धि कहीए.
ए छ प्रकारनी वृद्धिवडे परिणाम वस्तुमां लीन थई गया त्यारे
षट् प्रकार हानि (व्यय) कहीए.
अगुरुलघुगुणथी वस्तुनी सिद्धि छे. तेथी गुणनी सिद्धि गुण-
पर्यायथी छे, द्रव्यनी सिद्धि द्रव्यपर्यायथी छे, पर्यायनी सिद्धि द्रव्य –
गुणथी छे, द्रव्य – पर्यायनी सिद्धि द्रव्यथी छे (अने) गुणपर्यायनी सिद्धि
गुणथी छे. द्रव्यमांथी ज पर्याय ऊठे छे, (जो) द्रव्य न होय तो
परिणाम ऊठे नहि. द्रव्य, वगर परिणमे द्रव्यरूप कई रीते होय? माटे