गुणलक्षणरूपे परिणमे छे. तेथी क्रमअक्रम स्वभाव द्रव्यनो कह्यो छे. तेनुं
समाधान करीए छीए.
बाबत सिद्धांत प्रवचनसारजी (गा. ९९)मां कह्युं छे त्यांथी जाणवुं.
विष्कंभक्रम गुणोनो छे; ते गुणो पहोळाईरूप (
आ क्रम गुणमां छे तेथी (तेने) विष्कंभक्रम कहीए; अथवा गुणक्रमथी
कहीए (तो) दर्शन, ज्ञान इत्यादि सर्वे विस्तारने धरे छे तेथी (तेने)
विष्कंभक्रम कहीए. अहीं प्रवाहक्रम द्रव्यना परिणाम वडे छे तेथी
गुणोमां [ते] नथी, माटे गुण (ते) परिणतिनो प्रवाह नथी, गुणथी (तो)
विस्तारक्रम ज कह्यो छे.
ने आत्मानी (परिणति) जुदी छे. एम मानवाथी (ते बंनेनुं) सत्त्व जुदुं
ठरे छे, सत्त्व जुदुं थतां वस्तु अनेक (थईने) जुदी जुदी अवस्था धारण
करीने वर्ते. एम थतां तो विपर्यय थाय छे, वस्तुनो अभाव थाय छे.
मानवाथी तो ज्ञान जाणपणारूप परिणमे, दर्शन देखवारूप परिणमे एम
कहेवुं वृथा थयुं, अभेदमां भेद ऊपजे नहि, माटे समाधान करो.