Chidvilas-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिणमनशकित द्रव्यमां छे[ ३१
पुंज छे तेथी गुणथी पण ऊठी कहीए; द्रव्य अने गुणनां सत्त्व बे नथी,
एक छे. (परिणाम) द्रव्यमय परिणमतां गुण आव्या तेथी गुणमय
परिणाम छे. आ प्रकारे एक वस्तुना परिणाम निर्विकल्प छे. ज्ञानरूप
आत्मा परिणम्यो तो परिणाम जाणपणामां आव्या. तेथी ज्ञान
जाणपणारूप परिणमे छे एवी विवक्षा छे ते जाणवी.
वस्तुना परिणामने सर्वस्व कह्युं छे. ते कई रीते? परिणामवडे
अन्वय स्वभाव पमाय छे. जो परिणाम न होय तो अन्वयी द्रव्य
न होय, अनंत गुणो परिणम्या वगर द्रव्य न होय. तेथी वस्तुना
वेदनमां सर्वस्व परिणाम ते वेदकता छे. गुण परिणामथी गुणना
आस्वादनो लाभ थाय छे; द्रव्य परिणामथी द्रव्यना आस्वादनो लाभ
थाय छे, कहेवामां तो लक्ष्य
लक्षण भेद एवो बताव्यो छे, केमके लक्षण
वगर लक्ष्य एवुं नाम पामे नहि. ए रीते तो छे, परंतु परमार्थथी
अभेद निश्चयमां
निर्विकल्प वस्तुमां द्वैतकल्पनानो विकल्प क्यां संभवे
छे? एक अभेद वस्तुमां सर्व सिद्धि छे, जेम चंद्र अने चंद्रनो प्रकाश
एक ज छे. सामान्यताथी निर्विकल्प छे; विशेषताथी शिष्यने प्रतिबोध
करवामां आवे त्यारे जेम जेम शिष्य, गुरुना प्रतिबोधवाथी गुणनुं
स्वरूप जाणी जाणीने विशेष भेदी थतो जाय तेम तेम ते शिष्यने
आनंदना तरंग ऊठे, ते समये वस्तुनो निर्विकल्प आस्वाद करे. आ
कारणे गुण-गुणीनो विचार योग्य छे. गुणनां विशेषने (परिणाम) कह्या
छे; आ परिणामथी ज उत्पाद-व्ययवडे वस्तुनी सिद्धि छे एम कहीए
छीए.
१. प्रवचनसार गुज० पृ१९२