४२ ]
चिद्दविलास
(१) पुद्गलोनो एक स्कंध छे, तेने द्वि – अणुकादिथी निरपेक्ष एवा शुद्ध
द्रव्यार्थिकनयथी कहेवामां आवे तो ते स्कंधमां जेटला परमाणुओ
छे ते सर्वे अविभागी परमाणुनी माफक शुद्ध छे.
(२) ते स्कंधमां रहेल बधा परमाणुओमां जो उत्पाद व्ययनी गौणता
लईने सत्ताग्राहक (शुद्ध द्रव्यार्थिक) नय लईए तो (ते) सर्वे नित्य छे.
(३) भेद कल्पना निरपेक्ष (शुद्ध द्रव्यार्थिक)नय लईए तो (ते स्कंधनो
दरेक परमाणु) पोताना गुणपर्यायथी अभेद छे.
(४)१सत्ता गौण उत्पाद-व्ययग्राहकनयथी सर्वे परमाणु अनित्य छे; ते
अशुद्ध द्रव्यार्थिक (नय) छे.
(५) द्वि अणुकादिथी सापेक्ष एवा अशुद्ध द्रव्यार्थिकनयथी स्कंधादि
अशुद्धपुद्गलद्रव्य कहीए.
(६) भेद कल्पना [सापेक्ष] अशुद्ध द्रव्यार्थिकनयथी गुणनो गुणीथी भेद
कहेवाय छे.
(७) स्वद्रव्यादिचतुष्टय ग्राहक [द्रव्यार्थिक] नयथी [वस्तुने] अस्ति
कहीए.
(८) परद्रव्यादि [चतुष्टय] ग्राहक [द्रव्यार्थिक] नयथी नास्ति कहीए.
(९) अन्वय द्रव्यार्थिकनयथी गुणपर्यायस्वभाववाळुं द्रव्य छे.
(१०) परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक थी मूर्तिक जडस्वभावी पुद्गल छे.
ए प्रमाणे सामान्य – विशेषरूप वस्तु उपर अनंत नयो लागु पडे छे.
[अहीं द्रव्यार्थिकनयना दश भेद कह्या छे, पर्यायार्थिकनयना छ
भेद छे ते आगळ कहेशे.]
❁
१. उत्पादव्ययसापेक्षअशुद्धद्रव्यार्थिकनयथी जोतां द्रव्य एक समयमां
उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक छे, (आलापपद्धतिप्रमाणे)