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चिद्दविलास
‘‘पर्यायभावना सर्वे सर्वे भेदकरणा च जोगरक्षणा हि ।
स्वभावतोऽन्यथा कथना तं व्यवहारं जिनभणितं ।।
(१) पर्यायना जेटला भाव छे ते सर्वे व्यवहार नाम पामे छे.
(२) जेटला एकना अनेक भेद करवामां आवे ते सर्वे व्यवहार
नाम पामे छे.
(३) बंधाणुं अने छूट्युं – एवा जेटला भाव छे ते सर्वे व्यवहार
नाम पामे छे. अने
(४) स्वभावथी अन्य भावनुं जे कथन छे ते सर्व व्यवहार नाम
पामे छे. – आवो व्यवहार जिनागम विषे कह्यो छे.’’
हवे अहीं व्यवहारना प्रकारोनुं विस्तारथी वर्णन करे छेः – अहीं
जे विस्तार-वर्णन कर्युं छे ते आत्मअवलोकनमां कहेला चार प्रकारना क्रम
अनुसार छे; [अने ए वर्णन आत्मअवलोकनमां पण अक्षरशः छे].
(१)
आकाश विषे सर्व द्रव्योनुं रहेवुं, जीव – पुद्गलने गति – स्थितिमां
धर्म – अधर्मद्रव्यनो सहकार होवो; अथवा सर्व द्रव्योने परिणाम
परिणमाववामां काळनी वर्तनानो सहकार होवो; पुद्गलादिनी गतिवडे
काळ द्रव्यना परिणाम उपजाववा; ज्ञान विषे ज्ञेय, ज्ञेय विषे ज्ञान, ज्ञान
दर्शननी एक एक शक्ति एक एक स्व-पर ज्ञेय भेद प्रत्ये ज
लगाववी, – आवा भावो; तेमज परस्पर सर्व द्रव्योनो मेळाप थवो – एवा
एवा पर्यायना भावो [ते व्यवहार छे.]
वळी, विकार ऊपज्यो ने स्वभाव नाश थयो, तेम ज
स्वभाव ऊपज्यो ने विकार नाश थयो;
जीव ऊपज्यो, जीव मर्यो;
आ पुद्गल स्कंधरूप थया अथवा कर्मरूप थया (अथवा)